सस्ते में परिवार के साथ घूमें भोपाल के Tribal Museum, खर्च सुनकर पैक कर लेंगे बैग

Bhopal Tribal Museum: भोपाल में श्यामला हिल्स पर बने जनजातीय संग्रहालय (Tribal Museum) राज्य की सात जनजातियों की संस्कृति को समेटे हुए है. आदिवासी संस्कृति और सभ्यता की झलक पाने के लिए हर साल एक लाख से ज्यादा लोग यहां आते हैं. म्यूजियम में जनजातियों की जीवनशैली, रीति-रिवाज और संस्कृतियों को संरक्षित किया गया है.

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Bhopal Tribal Museum: भारत का इतिहास बहुत पुराना और दिलचस्प है. भारत में जितनी जातियां निवास करती हैं उनका सबका इतिहास बहुत ही दिलचस्प रहा है. इतिहास में जाकर देखा जाए तो हर समुदाय का जो कबीला होता था उसका रहने, खाने पहनने, शादी, रीति रिवाज अलग होते थे. अब सवाल ये उठता है कि उस जमाने में लोग कैसे रहते थे इसका पता कैसे लगाया जाए? इसके लिए आज हम लेकर आए हैं भोपाल की एक ऐसी जगह ही कहानी जहां पर इतिहास को संजोकर रखा गया है. भोपाल में एक म्यूजियम है जिसका नाम 'ट्राइबल म्यूजियम' है. आज आपको बताएंगे इस म्यूजियम में कैसे पहुंचा जाए और कितना खर्च आएगा सबकुछ. 

जनजातीय संग्रहालय को डिज़ाइन रेवती कामथ ने किया था. इसका उद्घाटन 6 जून 2013 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा किया गया था. म्यूजियम को छह अलग-अलग थीम दीर्घाओं में बांटा गया है, जो मध्य प्रदेश की विभिन्न जनजातियों जैसे गोंड, भील, भारिया, सहरिया, कोरकू, कोल और बैगा की पारंपरिक कला, शिल्प और संस्कृति को दर्शाती है. 

 

ट्राइबल म्यूजियम की सैर?

हम क्यों छुट्टियों में कहीं बाहर जाना चाहते हैं? इसका जवाब होगा कि बदलाव के लिए शांति के लिए, ताकि बोरियत और भागदोड़ भरी जिंदगी से कुछ आराम मिल सके. पिछले दिनों हमने भोपाल की यात्रा की. भोपाल को वैसे तो झीलों का शहर कहा जाता है, लेकिन यहां पर देखने के लिए और भी बहुत खूबसूरत चीजें हैं. भोपाल के ट्राइबल म्यूजियम में आप अपने परिवार के साथ जाएं तो और अच्छा रहेगा, वहां पर जाकर आपके माता-पिता को उनके पुराने दिन और आपके बच्चों को इतिहास का पता चलेगा. 

अब बात करते हैं म्यूजियम में एंट्री की, वहां पर एंट्री के अगर आप भारतीय हैं तो पर पर्सन 20 रुपये का टिकट है, वहीं विदेशियों के लिए पर पर्सन 400 रुपये का टिकट रखा गया है. इसके साथ ही अंदर जाने से पहले टिकट के साथ फोटो लेने के लिए कार्ड भी दिया जाता है, जिसके पास वो कार्ड होता है उसको ही अंदर फोटो लेने की सुविधा होती है. वो बिना किसी रोकटोक के फोटो ले सकता है. 

बैगा घर

म्यूजियम की शुरुआत में ही एक स्टोल लगा है जहां पर एंटीक पीस रखे हुए हैं, अच्छी बात ये है कि उनको आप खरीद भी सकते हैं. इसके बाद आगे बढ़ने पर हाथ से बने ट्राइबल्स के बनाए खूबसूरत सजावट के सामान हैं, उनको देखकर आपका मन खुश हो जाएगा. म्यूजियम में एक जगह ऐसी भी है जहां पर आप फोटो नहीं ले सकते हैं, भले ही आपके पास वो फोटो पास ही क्यों ना हो, वो जगह है आर्ट गैलरी. वहां हमेशा किसी ना किसी नए आर्टिस्ट की बनाई पेंटिंग्स बेचने के लिए रखी होती हैं, इसी लिए वो एरिया ज्यादा सिक्योरिटी वाला है. 

इसमें आगे बढ़ते हैं तो एक पूरी कमरा उन शहीदों की याद में बनाया गया है जिन्होंने अपने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी. सैकड़ों शहीदों की तस्वीरों के साथ उनकी गाथाएं लिखी हैं. वो म्यूजियम का बेहद ही खास हिस्सा है. यहां पर आपको जगह जगह पर गोबर और मिट्टी से लिपाई-पुताई का काम देखने को मिल जाएगा. हर तरफ से आती मिट्टी की खुशबू किसी को भी सुकून देने के लिए काफी है. 


यहां से आगे निकलते हैं तो म्यूजियम का बेहतरीन हिस्सा आता है, जहां पर सभी जनजातियों के घर बने हुए हैं. उन घरों को देखकर आपको लगेगा कि आप किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं. क्योंकि वहां पर जिस तरह के सामान आप देखेंगे वो शायद ही शहरी लोगों ने देखें हो. वहां पर मौजूद बुजुर्गों के चेहरे की खुशी को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है था कि वो अपने इस पुराने खजाने को देखकर कितने खुश हैं. 

उस दौर में गोंड, भील, भारिया, सहरिया, कोरकू, कोल और बैगा जनजातियां थीं. वो लोग कैसे रहते थे, उनको घरों में क्या सामान होते थे और इस घरों को डिजाइन वो किस तरह से करते थे, ये सब हमको वहां पर देखने को मिलेगा. अगर एक घर की बात करें तो उसमें देखा जा सकता है कि एक कमरा है, जिसमें एक चारपाई डली है, एक कोने में खाना पकाने के लिए किचन का सामान, एक लकड़ी की सीढ़ी ऊपर जाने के लिए जहां पर एक छोटा सा कमरा बना है. इन कमरों में कुछ देर बैठने का मन करता है, क्योंकि जो मिट्टी की खुशबू आपको मन को मोहित करती है उससे बेहतर उस वक्त कुछ नहीं लगता है. 

ये सब देखने के बाद बारी आती है पेट पूजा करने की, यानी जलपान गृह. म्यूजियम में एक पोर्शन बनया गया है जिसका नाम जलपान गृह रखा है. यहां पर खाना खाने का बेहद ही अलग अनुभव होगा. खाने के स्टॉल लगे हैं, जिनको आदिवासी महिलाएं चला रही हैं. वो अपने कल्चर का खाना वहां पर परोस रही हैं. इस थाली में कई तरह का सब्जी, अचार और चटनी के साथ परोसी जाती हैं. रोटी की बात करें तो उसमें दो तरह ही रोटी होती हैं जिसमें एक देसी घी से बनाई बाजरे की और दूसरी मकई की होती है. इस थाली में मिठाई उन्होंने गुड़ और महुआ की जलेबी भी रखी गई थी. इस थाली को महज 150  रुपये में दिया जाता है, सबसे अच्छा इसके साथ ये है कि खाना खाने के लिए जो टेबल लगाई गईं हैं वो पेड़-पौधों के बीच में हैं, जिससे आपके खाने का स्वाद बढ़ जाएगा. 

कच्चे मिट्टी से बने घर

खाने के बाद अब एत ट्राइबल्स के इहिहास में और पीछे जाने की बारी है, ये म्यूजियम का वो हिस्सा हैं जहां पर सिर्फ कच्चे घर हैं. ये वो समय था जब लोगों के कच्चे घर जिनपर छप्पर डली छत हुआ करती थी. इस एरिया में किसी को भी वीडियो बनाने की इजाजत नहीं है, लेकिन ये इतना खूबसूरत है कि इसको कैद करने के लिए आपका फोन बाहर निकल ही आता है, क्योंकि आप यहां पर सिर्फ फोटो ले सकते हैं. 

इस जगह को इस तरह से बनाया गया है जैसे की गांव में अंधेरा हो. हर तरफ नाइट लाइट्स लगी हैं, जिससे रात का अनुभव होता है. इसी में एक स्थान पूजा का भी बना रखा है. जहां पर तरह-तरह के पूजा करने के सामान रखे हैं, उन सामानों में त्रिशूल से लेकर लोगों को दफनाने की सभी चीजों को रखा गया है. एक तरफ देवी की मूर्ती है तो एक तरफ बड़ा सा रथ रखा है, जोकि फूलों से सजा है. इसको देखकर आपको गूजबंप्स आ सकते हैं. 

ट्राइबल्स के पूजा करने की जगह

कुल मिलाकर इस म्यूजियम में बताने के लिए बहुत कुछ है लेकिन कुछ चीजे आप खुद जाकर देखिए तो ज्यादा मजा आएगा. कहा जा सकता है कि इतिहास को जिस तरह से इस म्यूजियम में संजोया गया है वो बेहद ही सराहनीय पहल है. अगर आपके माता-पिता किसी गांव से ताल्लुक रखते थे वो इस जगह को बहुत पसंद करने वाले हैं. जल्द ही आपके लिए लेकर आएंगे कोई ऐसी ही नई और खूबसूरत जगह. First Updated : Tuesday, 25 June 2024