Indian Railways: भारत में ट्रेन यात्रा न केवल सस्ती और सुविधाजनक है, बल्कि यह हर दिन करोड़ों लोगों का सहारा भी है. हालांकि, रेलवे ने हाई-स्पीड वंदे भारत जैसी अत्याधुनिक ट्रेनों को शामिल करके अपने आप को अपग्रेड किया है, लेकिन कई क्षेत्रों में आज भी पुराने तरीकों का उपयोग हो रहा है. इनमें से एक है 'टोकन एक्सचेंज सिस्टम', जो ट्रेन संचालन को सुरक्षित बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
क्या है टोकन एक्सचेंज सिस्टम?
आपको बता दें कि यह एक पुरानी लेकिन प्रभावी तकनीक है, जिसका उद्देश्य एक ही ट्रैक पर चलने वाली ट्रेनों के बीच टकराव को रोकना है. सिस्टम में लोहे के एक छल्ले का उपयोग होता है, जिसे ट्रेन के ड्राइवर (लोकोपायलट) को दिया जाता है. इस छल्ले में एक विशेष बॉल होती है जिसे तकनीकी भाषा में 'टेबलेट' कहते हैं. वहीं जब ट्रेन किसी स्टेशन पर पहुंचती है, तो ड्राइवर उस टोकन को स्टेशन मास्टर को सौंप देता है. इसके साथ ही स्टेशन मास्टर इस बॉल को नेल बॉल मशीन में फिट करता है, जिससे अगले स्टेशन तक का ट्रैक सुरक्षित और क्लियर माना जाता है.
सुरक्षा के लिए क्यों जरूरी है यह सिस्टम?
आपको बता दें कि यह तकनीक तब शुरू हुई थी जब रेलवे के पास आधुनिक सिग्नल सिस्टम नहीं था. खासकर सिंगल ट्रैक वाले क्षेत्रों में यह सुनिश्चित करना जरूरी था कि एक बार में एक ही ट्रेन ट्रैक पर हो. वहीं जब तक ड्राइवर टोकन लेकर अगले स्टेशन पर नहीं पहुंचता, तब तक उस ट्रैक पर दूसरी ट्रेन को आने की अनुमति नहीं मिलती. अगर किसी वजह से ट्रेन अगले स्टेशन पर नहीं पहुंचती है, तो पिछले स्टेशन पर नेल बॉल मशीन लॉक रहती है. यह गारंटी देता है कि उसी ट्रैक पर किसी अन्य ट्रेन को चलाने में जोखिम न हो.
कैसे काम करता है टोकन सिस्टम?
आज भी प्रासंगिक क्यों?
इसके अलावा आपको बता दें कि टोकन एक्सचेंज सिस्टम रेलवे के उन क्षेत्रों में आज भी काम आता है जहां आधुनिक सिग्नल और ट्रैकिंग तकनीक उपलब्ध नहीं है. यह न केवल पुरानी तकनीकों की विश्वसनीयता को दर्शाता है, बल्कि ट्रेन संचालन में सुरक्षा की प्राथमिकता को भी साबित करता है. First Updated : Saturday, 07 December 2024