सोशल मीडिया की वजह से इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं लोग, जानें क्या है Imposter Syndrome?
Imposter Syndrome: आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया पर परफेक्शन की आदर्श छवि इम्पोस्टर सिंड्रोम को बढ़ावा दे सकती है. इसमें व्यक्ति अपनी उपलब्धियों पर संदेह करता है और खुद को धोखेबाज महसूस करता है. यह समस्या किसी को भी प्रभावित कर सकती है, और कई प्रसिद्ध हस्तियों ने इसके साथ अपने संघर्षों को साझा किया है.
Imposter Syndrome: आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया ने हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गया है. लेकिन जहां यह प्लेटफॉर्म हमें जुड़ने और अपनी उपलब्धियों को साझा करने का अवसर देता है, वहीं यह आत्म-संदेह और हीन भावना को भी बढ़ावा दे सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया पर परफेक्शन की आदर्श छवि इम्पोस्टर सिंड्रोम को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाती है.
इम्पोस्टर सिंड्रोम, एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी उपलब्धियों पर संदेह करता है और खुद को दूसरों के सामने "धोखेबाज" समझता है. कई प्रसिद्ध हस्तियों ने भी इस सिंड्रोम के साथ अपने संघर्षों को साझा किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह समस्या किसी को भी प्रभावित कर सकती है.
क्या है इम्पोस्टर सिंड्रोम?
इम्पोस्टर सिंड्रोम एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी सफलता के बावजूद उसे सही मायने में अपना हकदार नहीं मानता. वह अक्सर अपनी उपलब्धियों को भाग्य या दूसरों के भ्रम का नतीजा मानता है. उदाहरण के लिए, अभिनेता शेफाली शाह ने खुलासा किया कि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता और अंतर्राष्ट्रीय एमी नामांकित होने के बावजूद वह कम आत्मसम्मान और इम्पोस्टर सिंड्रोम से जूझ रही थीं. इसी तरह, अभिनेता मनोज बाजपेयी ने भी स्वीकार किया कि इस सिंड्रोम के कारण उन्हें अपनी सफलता पर दोषी महसूस होता था.
दूसरों से तुलना
सोशल मीडिया पर लोगों के जीवन के 'संपूर्ण' संस्करण देखने से लोग अक्सर अपनी वास्तविकता से असंतुष्ट महसूस करते हैं. गुड़गांव स्थित आर्टेमिस हॉस्पिटल के डॉ. राहुल चंडोक कहते हैं, "सोशल मीडिया पर परफेक्शन की आदर्श छवि इम्पोस्टर सिंड्रोम को बढ़ाती है. लोग अपनी उपलब्धियों को नज़रअंदाज कर दूसरों की तुलना में खुद को कमतर समझने लगते हैं."
किशोर और युवा अधिक संवेदनशील
बेंगलुरु की मनोवैज्ञानिक सुमालता वासुदेवा के अनुसार, "किशोर और युवा वयस्क इम्पोस्टर सिंड्रोम के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि वे अपनी पहचान विकसित कर रहे होते हैं और साथियों की मान्यता पर निर्भर होते हैं."
FOMO का डर
बाल मनोवैज्ञानिक ऋद्धि दोशी पटेल कहती हैं, "सोशल मीडिया पर लगातार अपडेट्स और लाइक्स-कमेंट्स के प्रति जुनून से FOMO (Fear of Missing Out) की भावना पैदा होती है, जिससे लोग अपने अनुभवों को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं."
इम्पोस्टर सिंड्रोम से निपटने के तरीके
1. फ़ीड को व्यवस्थित करें
ऐसे अकाउंट्स को फॉलो करें जो प्रेरणादायक और प्रामाणिक सामग्री प्रदान करते हैं.
2. स्क्रीन समय सीमित करें
सोशल मीडिया पर बिताए समय को नियंत्रित करने के लिए सीमाएं तय करें.
3. आत्म-करुणा का अभ्यास करें
याद रखें कि सोशल मीडिया वास्तविक जीवन का केवल एक आदर्श संस्करण दिखाता है.
4. व्यक्तिगत लक्ष्यों पर ध्यान दें
अपनी उपलब्धियों का जश्न मनाएं और बाहरी मान्यता पर कम निर्भर रहें.
5. खुद पर विश्वास रखें
अपनी प्रगति पर ध्यान देने के लिए डायरी लिखें और उपलब्धियों को दस्तावेज़ करें.
6. सोशल मीडिया ब्रेक लें
समय-समय पर डिजिटल डिटॉक्स करना आत्म-संतुलन के लिए ज़रूरी है.
Disclaimer: ये आर्टिकल मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.