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क्या है एंग्जाइटी? शरीर पर कैसे डालती है असर? जानिए इलाज और एक्सपर्ट टिप्स

एंग्जाइटी एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति अत्यधिक चिंता, डर और बेचैनी महसूस करता है. यह मानसिक और शारीरिक सेहत को प्रभावित कर सकती है. माइंडफुलनेस, सीबीटी, रिलैक्सेशन तकनीक और दवाएं इससे राहत दिला सकती हैं. समय पर पहचान और सही इलाज बेहद जरूरी है.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

दुनिया की सबसे आम मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है एंग्जाइटी यानी चिंता. कभी-कभी तनाव या चुनौतीपूर्ण स्थिति में चिंता महसूस होना आम बात है, लेकिन जब यह भावना हद से ज़्यादा, लगातार और बेकाबू हो जाती है, तो यह जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है. विशेषज्ञों के अनुसार, अगर समय रहते एंग्ज़ाइटी को पहचाना और नियंत्रित न किया जाए, तो यह डिप्रेशन, हार्ट डिजीज, पाचन से जुड़ी दिक्कतें और यहां तक कि आत्महत्या जैसे गंभीर मामलों में भी तब्दील हो सकती है.

वियतनाम और अमेरिका में मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर चुके विशेषज्ञ फुओंग ली बताते हैं कि एंग्ज़ाइटी एक ऐसी मानसिक स्थिति है जो शारीरिक दर्द जैसा महसूस हो सकती है. यह न सिर्फ दिमाग पर, बल्कि पूरे शरीर पर असर डालती है. अच्छी बात यह है कि आज कई असरदार तकनीकें और थेरेपीज़ उपलब्ध हैं, जिनसे एंग्जाइटी को मैनेज किया जा सकता है.

क्या है एंग्जाइटी?

एंग्ज़ाइटी या चिंता, हमारे दिमाग की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है जो किसी संभावित खतरे या चुनौती के प्रति सतर्क करती है. हालांकि जब यह भावना अत्यधिक, बार-बार और बिना किसी ठोस वजह के हो, तब यह मानसिक विकार का रूप ले सकती है.

एंग्ज़ाइटी बनाम तनाव: क्या फर्क है?

तनाव आमतौर पर किसी वर्तमान समस्या, जैसे कि नौकरी का प्रेशर या पारिवारिक कलह के कारण होता है और समय के साथ कम हो जाता है. जबकि एंग्ज़ाइटी कई बार बिना किसी स्पष्ट कारण के, मन में चल रही आशंकाओं की वजह से होती है और लंबे समय तक बनी रहती है.

सेहत पर एंग्ज़ाइटी का असर

फुओंग ली बताते हैं कि लंबे समय तक एंग्ज़ाइटी रहने से यह कार्डियोवस्कुलर सिस्टम, पाचन तंत्र, इम्यून सिस्टम और नींद तक को प्रभावित करती है. इससे इरिटेबल बाउल सिंड्रोम, अल्सर, हाई ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक और ऑटोइम्यून डिज़ीज़ जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं.

एंग्ज़ाइटी को कैसे करें मैनेज?

- माइंडफुलनेस: वर्तमान क्षण में ध्यान केंद्रित करना और सोच को नियंत्रित करना.

- गहरी सांस लेना और रिलैक्सेशन तकनीकें: दिमाग को शांत करने के लिए.

- 'वरी टाइम' तय करना: चिंता करने का एक सीमित समय तय करना ताकि बाकी दिन प्रोडक्टिव रहें.

- डायरी लिखना: कब, क्यों और कैसे एंग्ज़ाइटी होती है, इसे ट्रैक करने के लिए.

- बातचीत करना: भरोसेमंद लोगों से बात करने से मानसिक राहत मिलती है.

2. सीबीटी (कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी)

- नेगेटिव सोच की पहचान और री-स्ट्रक्चरिंग: गलत धारणाओं को तथ्यों से तोड़ना.

- बिहेवियरल एक्टिवेशन: पॉज़िटिव एक्टिविटी से मूड को सुधारना.

- एक्सपोज़र थेरेपी: डरावनी परिस्थितियों का धीरे-धीरे सामना करना.

- डायरी और सेल्फ-रिफ्लेक्शन: सोचने के पैटर्न को समझना और सुधारना.

दवाएं कैसे करती हैं काम?

सर्ट्रेलाइन (Lustral) और फ्लूऑक्सेटिन (Prozac) जैसी SSRI दवाएं मस्तिष्क में सेरोटोनिन के लेवल को बैलेंस करने में मदद करती हैं. सेरोटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो मूड को नियंत्रित करता है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि दवाएं अकेले समाधान नहीं हैं. इन्हें थेरेपी और लाइफस्टाइल बदलाव के साथ ही अपनाना चाहिए.

एंग्ज़ाइटी से जुड़ी आम गलतफहमियां

- यह सिर्फ कमजोर लोगों को होती है: असल में, ये किसी को भी हो सकती है. इसका कारण जैविक, पर्यावरणीय और अनुवांशिक हो सकते हैं.

- समय के साथ ये अपने आप चली जाती है: बिना इलाज के, ये स्थिति और बिगड़ सकती है.

- बात करने से एंग्ज़ाइटी बढ़ती है: इसके उलट, बात करने से राहत मिलती है और मदद मिलने की संभावना बढ़ती है.

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19 April 2025, 03:32 PM IST

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