तनाव, अंधविश्वास या फिर... जब नाचते-नाचते मरने लगे सैकड़ों लोग, क्या है 1518 का 'डांसिंग प्लेग'?
1518 में फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में एक रहस्यमयी 'डांसिंग प्लेग' फैला, जिसमें लोग नाचते-नाचते मरने लगे. इस अजीबोगरीब महामारी की शुरुआत Frau Troffea नामक महिला से हुई और अगस्त तक 400 से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ गए. कुछ ने इसे दैवी श्राप बताया तो कुछ ने मानसिक महामारी, लेकिन आज तक इसका सही कारण रहस्य ही बना हुआ है.

इतिहास में कई घटनाएं ऐसी रही हैं जो आज भी हैरान कर देती हैं. ऐसी ही एक रहस्यमयी और खौफनाक घटना घटी थी फ्रांस के स्ट्रासबर्ग शहर में, जब सैकड़ों लोग अनजाने में नाचते-नाचते अपनी जान गंवा बैठे. ये कोई त्योहार या उत्सव नहीं था, बल्कि एक अजीबोगरीब महामारी- जिसे 'डांसिंग प्लेग ऑफ 1518' कहा गया.
ये घटना इतनी विचित्र और भयानक थी कि लोगों ने इसे दैवी प्रकोप से जोड़ दिया. ये कोई रूमानी कथा नहीं बल्कि एक वास्तविक त्रासदी थी, जिसने पूरे यूरोप को सकते में डाल दिया. ऐसे में आइए जानें उस समय क्या हुआ था जब 'नाचते-नाचते लोग गिर पड़े और फिर कभी उठ नहीं पाए.'
कैसे शुरू हुई 'डांसिंग प्लेग' की ये खौफनाक कहानी?
जुलाई 1518 में स्ट्रासबर्ग (जो उस वक्त होली रोमन एम्पायर का हिस्सा था) की गलियों में एक महिला Frau Troffea अचानक नाचने लगी. कोई संगीत नहीं बज रहा था, कोई उत्सव नहीं था- फिर भी वो लगातार घूमती-थिरकती रही. एक दिन नहीं, दो दिन नहीं... पूरे 7 दिन तक बिना रुके, बिना खाए, पिए. देखते ही देखते और लोग भी इस रहस्यमयी नृत्य में शामिल होते चले गए. अगस्त तक ये संख्या 400 से ज्यादा हो गई और चौंकाने वाली बात ये रही कि दर्जनों लोग इस 'डांसिंग प्लेग' के चलते अपनी जान गंवा बैठे.
नाचते-नाचते थककर मर गए लोग
रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्थानीय प्रशासन ने इसे रोकने के लिए संगीतकारों और प्रोफेशनल डांसर्स को बुलाया, एक स्टेज बनवाया ताकि लोग 'अपना मन हल्का कर सकें'. लेकिन इसका उल्टा असर हुआ. लोग थकावट, भूख और डिहाइड्रेशन से मरते चले गए. उस समय के चिकित्सकों ने इसे 'हॉट ब्लड' नामक बीमारी का नाम दिया. उनका मानना था कि शरीर में गर्म खून जमा हो गया है जिससे लोग अनायास नाचने लगते हैं. लेकिन ये तर्क भी मृतकों की संख्या को देखते हुए अपर्याप्त साबित हुआ.
दैवी श्राप या मानसिक महामारी?
Edinburgh University Press में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, उस दौर में ऐसी घटनाओं को अक्सर St. Vitus नामक संत के श्राप से जोड़ा जाता था. लोग मानते थे कि ये संत नाच की बीमारी का श्राप देता है. 1518 में जब स्ट्रासबर्ग भुखमरी और महामारी जैसी समस्याओं से जूझ रहा था, तो मानसिक तनाव और अंधविश्वास मिलकर इस सामूहिक उन्माद (Mass Hysteria) को जन्म दे सकते हैं.
ये पहली बार नहीं था जब ऐसी कोई घटना सामने आई हो. 11वीं सदी में Saxony के Kölbigk शहर में भी इसी तरह की 'डांसिंग प्लेग' की रिपोर्ट मिली थी. लेकिन 1518 का स्ट्रासबर्ग मामला इसलिए खास बन गया क्योंकि इसने मध्यकालीन मान्यताओं और आधुनिक सोच के बीच एक नया अध्याय लिखा.