रात के समंदर में ग़म की नाव चलती है
दिन के गर्म साहिल पर ज़िंदा लाश जलती है
इक खिलौना है गीती तोड़ तोड़ के जिस को
बच्चों की तरह दुनिया रोती है मचलती है
फ़िक्र ओ फ़न की शह-ज़ादी किस बला की है नागिन
शब में ख़ून पीती है दिन में ज़हर उगलती है,
ज़िंदगी की हैसियत बूँद जैसे पानी की
नाचती है शोलों पर चश्म-ए-नम में जलती है
भूके पेट की डाइन सोती ही नहीं इक पल
दिन में धूप खाती है शब में पी के चलती है
पत्तियों की ताली पर जाग उठे चमन वाले
और पत्ती पत्ती अब बैठी हाथ मलती है
घुप अँधेरी राहों पर मशअल-ए-हुसाम-ए-ज़र
है लहू में ऐसी तर बुझती है न जलती है
इंक़िलाब-ए-दौराँ से कुछ तो कहती ही होगी
तेज़ रेलगाड़ी जब पटरियाँ बदलती है
तिश्नगी की तफ़्सीरें मिस्ल-ए-शम्मा हैं ‘वामिक’
जो ज़बान खुलती है उस से लौ निकलती है First Updated : Wednesday, 24 August 2022