तू अगर दिल-नवाज़ हो जाए | अलीम अख्तर

तू अगर दिल-नवाज़ हो जाएसोज़ हम-रंग-ए-साज़ हो जाएदिल जो आगाह-ए-राज़ हो जाएहर हकीक़त मजाज़ हो जाए

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तू अगर दिल-नवाज़ हो जाए

सोज़ हम-रंग-ए-साज़ हो जाए


दिल जो आगाह-ए-राज़ हो जाए

हर हकीक़त मजाज़ हो जाए


लज़्ज़त-ए-ग़म का ये तक़ाज़ा है

मुद्दत-ए-ग़म दराज़ हो जाए


नग़मा-ए-इश्क़ छेड़ता हूँ मैं

ज़िंदगी नै-नवाज़ हो जाए


उस की बिगड़ी बने न क्यूँ ऐ इश्क़

जिस का तू कार-साज़ हो जाए


हुस्न मग़रूर है मगर तौबा 

इश्क़ अगर बे-नियाज़ हो जाए


*दर्द का फिर मज़ा है जब 'अख़्तर'

दर्द ख़ुद चारा-साज़ हो जाए First Updated : Wednesday, 17 August 2022

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