वो ख़ुद को मेरे अंदर ढूँढता है | अमीन अशरफ़

वो ख़ुद को मेरे अंदर ढूँढता हैवो सूरत है ये सूरत-आश्‍ना हैमगर ये अपने अपने दाएरे हैंकोई नग़मा कोई नग़मा-सरा है

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वो ख़ुद को मेरे अंदर ढूँढता है

वो सूरत है ये सूरत-आश्‍ना है


मगर ये अपने अपने दाएरे हैं

कोई नग़मा कोई नग़मा-सरा है


वो बादल है तो क्यूँ है जू-ए-कम-आब

समंदर है तो क्यूँ पर तौलता है


नदी के दरमियाँ सीधी सड़क है

नदी के पार कच्चा रास्ता है


वो ना-मौजूद हर शय में है मौजूद

ये आलम भी अजब हैरत-फ़ज़ा है


न जाने क्या सर-ए-नज्ज़ारा होगा

उसे देखा नहीं दिल मुब्तिला है First Updated : Saturday, 27 August 2022