मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़साना हो रहा हूँ | वली दक्कनी

मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़साना हो रहा हूँ,तेरी निगह का जब सूँ दीवाना हो रहा हूँ,

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मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़साना हो रहा हूँ

तेरी निगह का जब सूँ दीवाना हो रहा हूँ

 

ऐ आशना करम सूँ यक बार आ दरस दे

तुझ बाज सब जहाँ सूँ बे-गाना हो रहा हूँ

 

बाताँ लगन की मत पूछ ऐ शम्मा-ए-बज़्म-ए-ख़ूबी

मुद्दत से तुझ झलक का परवाना हो रहा हूँ

 

शायद वो गंज-ए-ख़ूबी आवे किसी तरफ़ सूँ

इस वास्ते सरापा वीराना हो रहा हूँ

 

सौदा-ए-ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ रखता हूँ दिल में दाइम

ज़ंजीर-ए-आशिक़ी का दीवाना हो रहा हूँ

 

बर-जा है गर सुनूँ नईं नासेह तेरी नसीहत

मैं जाम-ए-इश्क़ पी कर मस्ताना हो रहा हूँ

 

किस सूँ ‘वली’ आपस का अहवाल जा कहूँ मैं

सर ता क़दम मैं ग़म सूँ ग़म-ख़ाना हो रहा हूँ First Updated : Thursday, 25 August 2022

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