झरिलागै महलिया, गगन घहराय। धनी धरमदास

झरिलागै महलिया, गगन घहराय।खन गरजै, खन बिजरी चमकै, लहर उठै सोभा बरनि न जाय॥सुन्न महल से अमरित बरसै, प्रेम अनंद होइ साध नहाय॥

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झरिलागै महलिया, गगन घहराय।

खन गरजै, खन बिजरी चमकै, लहर उठै सोभा बरनि न जाय॥

सुन्न महल से अमरित बरसै, प्रेम अनंद होइ साध नहाय॥

खुली किवरिया मिटी अंधियरिया, धन सतगुरु जिन दिया है लखाय॥

'धरमदास बिनवै कर जोरी, सतगुरु चरन मैं रहत समाय॥ First Updated : Wednesday, 24 August 2022