Kavita: और कुछ सोचने लगा शायद। सुरेश कुमार
पिता को जितना बीत गया उसके सामने जितना बीतने वाला है, इतना छोटा लगता कि उन्हें मृत्यु के पहले का अपना जीवन दो हाथ लम्बी ज़मीन मालूम देता जिसे वे एक बार में कूद कर पार सकते थे। वे इस लम्बी कूद
और कुछ सोचने लगा शायद
मैं उसे भूलने लगा शायद
क्यों मुझे घेरती है तनहाई
मुझसे कुछ छूटने लगा शायद
जिसपे उम्मीद लहलहाती थी
पेड़ वो सूखने लगा शायद
छोड़कर राह में मुझे तनहा
चाँद भी लौटने लगा शायद
अपनी सच बोलने की आदत से
मैं भी अब ऊबने लगा शायद