Kavita: और कुछ सोचने लगा शायद। सुरेश कुमार

पिता को जितना बीत गया उसके सामने जितना बीतने वाला है, इतना छोटा लगता कि उन्हें मृत्यु के पहले का अपना जीवन दो हाथ लम्बी ज़मीन मालूम देता जिसे वे एक बार में कूद कर पार सकते थे। वे इस लम्बी कूद

Sagar Dwivedi
Sagar Dwivedi

और कुछ सोचने लगा शायद

मैं उसे भूलने लगा शायद

 

क्यों मुझे घेरती है तनहाई

मुझसे कुछ छूटने लगा शायद

 

जिसपे उम्मीद लहलहाती थी

पेड़ वो सूखने लगा शायद

 

छोड़कर राह में मुझे तनहा

चाँद भी लौटने लगा शायद

 

अपनी सच बोलने की आदत से

मैं भी अब ऊबने लगा शायद

calender
04 August 2022, 07:13 PM IST

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