Kavita: अब तो ये ख़ुद भी सोचता हूँ मैं। सुरेश कुमार
अब तो ये ख़ुद भी सोचता हूँ मैं, किस तरह तुझको चाहता हूँ मैं
अब तो ये ख़ुद भी सोचता हूँ मैं
किस तरह तुझको चाहता हूँ मैं
दुख की बहती हुई नदी जब भी
तुझको छूती है, डूबता हूँ मैं
तू भी शायद ये सोचती होगी
जाने क्या तुझमें देखता हूँ मैं
चाँद, दरिया, हवा, धनक, ख़ुशबू
तुझको हर शै में ढूँढता हूँ मैं
ख़ुद को ऐसे न ढूँढ पाऐगी
तू इधर आ तेरा पता हूँ मैं