नाम क रंग मंजीठ, लगै छूटै नहिं भाई। धनी धरमदास
नाम क रंग मंजीठ, लगै छूटै नहिं भाई। लचपच रहो समाय, सार तामैं अधिकाई।
नाम क रंग मंजीठ, लगै छूटै नहिं भाई।
लचपच रहो समाय, सार तामैं अधिकाई।
केती बार धुलाइये, दे दे करडा धोय।
ज्यों-ज्यों भट्ठी पर दिए, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय॥