हमारी ख़्वाहिश | राम प्रसाद बिस्मिल

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है।

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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है।

 

रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में,

लज़्ज़ते सहरा नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है।

 

वक़्त आने दे, बता देंगे तुझे, ऐ आसमां!

हम अभी-से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।

 

अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़,

एक मिट जाने की हरसरत अब दिले ‘बिस्मिल’ में है।

 

आज मक़तल में ये क़ातिल कह रहा है बार-बार,

क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है!

 

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत, तेरे जज़्बों के निसार,

तेरी कुर्बानी का चर्चा गै़र की महफ़िल में है। First Updated : Saturday, 30 July 2022