हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे | अकरम नक़्क़ाश
हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे, सहरा किया कभी कभी दरिया किया मुझे,
हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे,
सहरा किया कभी कभी दरिया किया मुझे,
कुछ तो इनायतें हैं मिरे कारसाज़ की,
और कुछ मिरे मिज़ाज ने तन्हा किया मुझे,
पथरा गई है आँख बदन बोलता नहीं,
जाने किस इंतिज़ार ने ऐसा किया मुझे,
तू तो सज़ा के ख़ौफ़ से आज़ाद था मगर,
मेरी निगाह से कोई देखा किया मुझे,
आँखों में रेत फैल गई देखता भी क्या,
सोचों के इख़्तियार ने क्या क्या किया मुझे।