अंतिम सांस तक | अलका सिन्हा

ग्राहक को कपड़े देने से ठीक पहले तक कोई तुरपन, कोई बटन टाँकता ही रहता है दर्ज़ी । परीक्षक के पर्चा खींचने से ठीक पहले तक

ग्राहक को कपड़े देने से ठीक पहले तक

कोई तुरपन, कोई बटन

टाँकता ही रहता है दर्ज़ी ।

 

परीक्षक के पर्चा खींचने से ठीक पहले तक

सही, ग़लत, कुछ न कुछ

लिखता ही रहता है परीक्षार्थी ।

 

अंतिम साँस टूटने तक

चूक-अचूक निशाना साधे

लड़ता ही रहता है फ़ौजी ।

 

नहीं डालता हथियार

कोई नहीं छोड़ता आस

अंतिम साँस तक ।

calender
18 August 2022, 04:49 PM IST

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