वो 'कट्टर हिंदुस्तानी' शायर जिसने पहली बार दिया था पाकिस्तान बनाने का सुझाव
Allama Iqbal: पाकिस्तान का ख्याल भले ही इकबाल ने दिया हो लेकिन हिंदुस्तान के लिए उनकी खिदमत को कभी नहीं भुलाया जा सकता.
Allama Iqbal: 15 अप्रैल 1984 का दिन हिंदुस्तान की तारीख के सुनहरे दिनों में से एक था. ये वो दिन था जब हिंदुस्तान अंतरिक्ष में अपनी नई उड़ान भर रहा था और इंदिरा गांधी ने देश के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से उस समय बात की थी जब वो स्पेस में थे. इंदिरा गांधी के कई सवालों में से एक सवाल यह भी था कि आपको अतंरिक्ष से हिंदुस्तान कैसा दिख रहा है? राकेश जवाब देते हैं,"सारे जहां से अच्छा...". ये चार शब्द अल्लामा इकबाल की नज्म तराना-ए-हिंद के हैं. तराना-ए-हिंद वो नज्म है जिसे लगभग हर हिंदुस्तानी जानता है.
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अस्थियों को जब गंगा-जमना के संगम में बहाया जा रहा था तो उस समय भी किसी की जबान पर सारे जहां से अच्छा, हिंदोस्तान हमारा... आ गया था. आजादी से पहले और बाद, यहां तक कि आजतक भी यह नज्म हिंदुस्तानियों को गर्व करने वाले मौकों पर याद आ ही जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस नज्म को लिखने वाले इकबाल वो शख्स हैं जिन्होंने पहली बार पाकिस्तान जैसी किसी चीज तसव्वुर किया था. जी हां इकबाल ही वो शख्स हैं जिनके ज़हन में पहली बार भारत में एक अलग मुस्लिम रियासत बनाने का ख्याल आया था. बाद में जाकर ये ख्याल सच साबित हुआ और पाकिस्तान बना. हालांकि पाकिस्तान बनने से पहले ही 1938 में वो इस दुनिया से अलविदा कह गए थे.
पाकिस्तान का ख्याल भले ही इकबाल ने दिया हो लेकिन हिंदुस्तान के लिए उनकी खिदमत को कभी नहीं भुलाया जा सकता. उनकी अनगिनत नज्में और गीत आजादी की जंग में जोश और जुनून भर दिया करते थे. इकबाल लिखते हैं कि-
वतन की फ़िक्र कर नादाँ! मुसीबत आने वाली है
तेरी बर्बादियों के मश्वरें हैं आसमानों में
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में
इकबाल ना सिर्फ एक शायर बल्कि शानदार रहनुमा, बैरिस्टर और दार्शनिक भी थे. यही वजह है कि उन्हें अल्लामा भी कहा जाता था. ब्रिटिश हिंदुस्तान में उनका जन्म सियालकोट के एक ऐसे परिवार में हुआ था जिनका शजरा कश्मीरी पंडितों से मिलता है. इकबाल ने उर्दू, फारसी और अरबी जैसी भाषाएं मस्जिद और मदरसों से पढ़नी-लिखनी सीखीं. हालांकि बाद में दुनियावी तालीम हासिल करने के लिए वो इंग्लिस्तान की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी तक गए. इकबाल जो लिखते और सोचते थे वो बहुत दूरअंदेशी होता था. यही वजह है कि हर गुजरते दिन के साथ उनकी शायरी और सच्ची होती जा रही है.
इकबाल की शायरी को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. एक उनके यूरोप जाने से पहले और दूसरा यूरोप से वापस आने के बाद. यूरोप से वापसी के बाद इकबाल ने जब अपनी कलम चलानी शुरू की तो सारी दुनिया हैरान थी. उस वक्त वो जो भी लिख रहे थे वो आज तक भी इतिहास बना हुआ है. उनकी एक नज्म 'शिकवा' पर तो इनता विवाद हो गया था कि उनके खिलाफ मुफ्तियों ने फतवे जारी कर दिए थे. यहां तक कि उनके लिए काफिर जैसे शब्दों इस्तेमाल किया जाने लगा था. हालांकि इकबाल मुसलमानों के लिए बहुत फिक्रमंद थे, उन्होंने मुसलमानों को जगाने के लिए जिस तरह की मेहनत की है वो शायद उनके बाद कोई नहीं कर पाया. कहा तो यह भी जाता है कि मुसलमानों को बेदार करने की इतनी कोशिशें करने वाला शख्स पिछली कई सदियों में पैदा नहीं हुआ. तो फिर मुसलमानों ने ही उनके खिलाफ फतवे क्यों जारी किए?
दरअसल इकबाल ने अपनी नज्म 'शिकवा' खुदा से शिकायती लहजे में लिखी थी. लिखते-लिखते इकबाल इस हद तक पहुंच गए थे कि तू-तू-मैं-मैं करते हुए बात करने लगे थे और मुसलमानों के बुरे हालात के लिए जिम्मेदार ठहराने जैसे आरोप भी लगाए थे. इसी वजह से उनके खिलाफ फतवे जारी हुए. इकबाल ने शिकवा में लिखा था कि-
तेरे काबे को जबीनों से बसाया हम ने
तेरे क़ुरआन को सीनों से लगाया हम ने
फिर भी हम से ये गिला है कि वफ़ादार नहीं
हम वफ़ादार नहीं तू भी तो दिलदार नहीं
लेकिन इकबाल फतवों का बोझ खामोशी से झेलते रहे और उन्होंने जवाब में एक और नज्म लिखी- जिसका नाम था 'जवाब-ए-शिकवा'. ये ऐसी नज्म थी जिसने फतवे जारी करने वाले मुफ्तियों को शर्मसार कर दिया था. क्योंकि इस नज्म में इकबाल ने अपनी पुरानी नज्म का खुदा की तरफ से जवाब लिखा था. इकबाल लिखते हैं कि-
मेरे काबे को जबीनों से बसाया किस ने
मेरे क़ुरआन को सीनों से लगाया किस ने
थे तो आबा वो तुम्हारे ही मगर तुम क्या हो
हाथ पर हाथ धरे मुंतज़िर-ए-फ़र्दा हो
अल्लामा इकबाल ने भगवान राम को लेकर भी नज्म लिखी है. उन्होंने राम को 'इमाम-ए-हिंद' जैसे शब्दों से पुकारा है. वो कहते हैं कि "है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़". इकबाल अपनी शायरी और विचारों के चलते हिंदुस्तान के उन शायरों में शुमार किए जाते हैं, जिनपर दुनियाभर में खूब रिसर्च की जाती है. यहां तक कि कई यूनिवर्सिटीज के अंदर तो उनके नाम के अलग डिपार्टमेंट्स बने हुए हैं. उनको पढ़ने वालों की तादाद ना सिर्फ हिंदुस्तान-पाकिस्तान और आसपास के देशों में है बल्कि पश्चिम के देशों में भी उन्हें खूब पढ़ा जाता है. आखिर में सुनिए उनके कुछ मशहूर शेर.
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
ना हक के लिए उट्ठे तो शमशीर भी फित्ना
शमशीर ही क्या नारा-ए-तकबीर भी फित्ना
तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी