देखि दुपहरी जेठ की, छाँहौं चाहति छाँह...बिहारी के इस दोहे में है भयंकर गर्मी का जिक्र

Bihari Couplets: किसी कवि का यश उसके द्वारा रचित ग्रंथों के परिणाम पर नहीं बल्कि उसके गुण पर निर्भर होता है. बिहारी के साथ भी यही बात है. आज हम आपको उनका एक दोहा पेश करने जा रहे हैं जिसमें भीषण गर्मी के बारे में जिक्र किया गया है.

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Bihari Couplets on Summer Season: बिहारी हिंदी के रीति काल के प्रसिद्ध कवि थे, जिनका पूरा नाम बिहारी लाल चौबे है. उनका जन्म साल 1595 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था. कहा जाता है कि, जब वो 8 साल के थे तब उनके पिता ओरछा तले गए. यहीं रहकर बिहारी आचार्य केशवदास से शिक्षा ग्रहण की. इसी दौरान बिहारी रहीम के संपर्क में आए थे. बिहारी की काव्यभाषा ‘ब्रजभाषा’ है जिसमें उन्होंने कई ग्रंथ लिखे हैं.

आज हम आपको बिहार के कुछ ऐसे दोहे पेश करने जा रहे हैं जिसमें उन्होंने जेठ की दुपहरी और भीषण गर्मी की भयंकरता का वर्णन किया है तो चलिए पढ़ते हैं.

कुछ इस प्रकार है दोहा

बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की, छाँहौं चाहति छाँह ॥

कवि बिहारी लाल चौबे ने इस दोहे के माध्यम से कवि ने जेठ महीने की गर्मी का चित्रण किया है. कवि का कहना है कि जेठ की गरमी इतनी तेज होती है की छाया भी छाँह ढ़ूँढ़ने लगती है. बिहारी जी ने इस दोहे के माध्यम से बताया है कि गर्मी में सूर्य के प्रचंड ताप से पूरी पृथ्वी जल रही है.

दोपहर के समय जब सूर्य आसमान के बीचो-बीच होता है तब कहीं भी छाया दिखाई नहीं देती है.रास्ता सूना दिखने लगता है. इस दौरान ऐसा लगता है कि मानो छाया भी गर्मी से बेहाल होकर सघन वन यानी अपने घर में चली गई हो.

तेज गर्मी के कारण जंगल में स्थित जल-स्रोतों में पानी सूख जाता है और सभी जीव-जन्तु बेचैन हो जाते हैं. भयंकर गर्मी के कारण सभी जीव-जंतु आपसी बैर भाव को भूल जाते हैं. कहीं भी कोई बैर भाव दिखाई नहीं देता है. मोर, सांप, बाघ, हिरण जैसे स्वाभाविक बैरी भी दुश्मनी भूलकर एकता, सद्भावना और प्रेम के साथ रहने लगते हैं. जिससे धरती तपोवन के समान प्रतीत होती है.

First Updated : Wednesday, 29 May 2024