दूसरा बनवास: राम बन-बास से जब लौट के घर में आए… पढ़िए कैफी आज़मी की नज़्म
भगवान राम पर अनगिनत भजन, गीत, नज़्म और ग़ज़लें लिखी गई हैं. इस मौक़े पर आज हम आपको कैफी आज़मी के द्वारा लिखी गई 'दूसरा बनवास' नज़्म पढ़वाने जा रहे हैं.
Urdu Nazm on Bhagwan Ram: दुनिया की तारीख़ में आज यानी 22 जनवरी को नया इतिहास लिखा जा रहा है. आज सारी दुनिया की नज़रें अयोध्या पर टिकी हुई हैं. जहां भगवान राम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. जिन लोगों की भगवान राम में आस्था है वो लोग इस दिन को भगवान राम के 500 साल के बनवास के बाद अयोध्या में वापसी के तौर पर देख रहे हैं. साथ ही दीवाली की तरह इस दिन का जश्न मना रहे हैं. इस मौक़े पर हम आपको उर्दू साहित्य का एक नज़्म ‘दूसरा बनवास’ पढ़वाने जा रहे हैं. यह नज़्म उर्दू साहित्य का बड़ा नाम रहे कैफी आज़मी साहब ने लिखी है.
दूसरा बनवास- कैफी आजमी
राम बन-बास से जब लौट के घर में आए
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
रक़्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा
छे दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मिरे घर में आए
जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ
प्यार की काहकशाँ लेती थी अंगड़ाई जहाँ
मोड़ नफ़रत के उसी राहगुज़र में आए
धर्म क्या उन का था, क्या ज़ात थी, ये जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मिरा लोग जो घर में आए
शाकाहारी थे मेरे दोस्त तुम्हारे ख़ंजर
तुम ने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मिरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आए
पाँव सरजू में अभी राम ने धोए भी न थे
कि नज़र आए वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
पाँव धोए बिना सरजू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे
राजधानी की फ़ज़ा आई नहीं रास मुझे
छे दिसम्बर को मिला दूसरा बन-बास मुझे
रक़्स-ए-दीवानगी= दीवानगी में किया जाने वाला नृत्य
काहकशाँ= आकाशगंगा
राहगुजर= मार्ग-पथ