Prithviraj Chauhan And Sanyogita Love story: भारत वीरो की भूमि यूं ही नहीं कही जाती है. इस धरती पर कई वीर सपूत पैदा हुए हैं जिन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ाए हैं. भारत के वीर सपूतों की गाथा इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. आज हम आपको एक ऐसा योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने मुहम्मद गौरी को युद्ध में 17 बार हराया था.
हम बात कर रहे हैं हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की उन्होंने कन्नौज की राजकुमारी को भरे दरबार से भगा कर शादी कर लिए थे. कहा जाता है कि, पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी बेहद फिल्मी है जिसमें रोमांच, इमोशन, बदला और फूल ड्रामा है. तो चलिए आज उनकी प्रेम कहानी की दिलचस्प बाते जानते हैं.
''इश्क और जंग में सब जायज है'' ये डायलॉग्स तो आपने सुना ही होगा. ये कहावत हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर बिल्कुल फिट बैठती है. उन्होंने अपनी प्रेमिका को पाने के लिए भी कुछ ऐसा ही किया था. दरअसल, कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता बेहद सुंदर थी जिसका जिक्र दूर-दूर तक होता था. एक बार संयोगिता को पत्रकार ने पृथ्वीराज चौहान का चित्र दिखाया जिसे देखने के बाद वह अपना दिल हार बैठी. वहीं चित्रकार संयोगिता का चित्र पृथ्वीराज चौहान को भी दिखाया तो वो भी उन्हें देखते ही प्यार कर बैठे.
संयोगिता का चित्र देखने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने मन बना लिया कि वो उन्ही से शादी करेंगे. हालांकि संयोगिता के पिता जयचंद और पृथ्वीराज चौहान एक दूसरे के कट्टर दुश्मन थे. जिस समय पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के गद्दी पर बैठे थे उसी समय जयचन्द राजसूय यज्ञ और अपनी बेटी संयोगिता का स्वयंवर कराने का ऐलान करते हैं. इस यज्ञ का निमंत्रण जयचन्द ने अपने आस-पास के सभी राजाओं को के साथ-साथ पृथ्वीराज चौहान को भी दी.
हालांकि, पृथ्वीराज के सामंतों के यह बात ठीक नहीं लगी जिसके बाद उन्होंने निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया. पृथ्वीराज चौहान द्वारा निमंत्रण अस्वीकार करने के बाद जयचन्द काफी गुस्से में आ गया और यज्ञ मंडप के बाहर दरवाजे पर उनकी एक प्रतिमा द्वारपाल के रूप में स्थापित कर दी.
जयचन्द अपनी बेटी का स्वयंवर कराने की तैयारी कर चुका था. हालांकि संयोगिता इस बात से काफी नाराज थी कि पृथ्वी राज चौहान इस स्वयंबर में नहीं आए हैं. स्वयंवर में आए किसी भी राजाओं को चुनने के लिए संयोगिता तैयार नहीं हुई जिसके बाद वो मंडप के दरवाजे पर लगी पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति को माला पहनाने निकल पड़ती है. इस दौरान पृथ्वीराज वहां पहुंच जाते हैं और फिर संयोगिता उनके गले में वरमाला डाल देती है. इस सब के बाद पृथ्वीराज चौहान संयोगिता को अपने घोड़े पर बैठते हैं और उन्हें दिल्ली लेकर आ जाते हैं और शादी कर लेते हैं.
आपको बता दें कि, संयोगिता को इस तरह स्वयंवर से भगा कर ले जाना जयचन्द को ठीक नहीं लगा जिसके बाद उसने मुहम्मद गौरी के साथ मित्रता कर ली. खास बात यह है कि, मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की आपस में दुश्मन थी इसलिए जयचन्द मुहम्मद गौरी के साथ मिलकर हमला कर देते हैं और उन्हें बंदी बना लेते है. हालांकि इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि 16 बार युद्ध में मुहम्मद गौरी को हराने वाले पृथ्वी राज चौहान 17 वें .युद्ध में उसके शिकार हो गए. First Updated : Thursday, 28 December 2023