Firaq Gorakhpuri: हिंदुस्तान में सिर्फ़ ढाई लोगों को अंग्रेज़ी आती है, आख़िर कौन हैं वो ढाई लोग?

Firaq Gorakhpuri: फ़िराक़ गोरखपुरी ऐसी शख्सियत थे जो एक सीरियस बात को अपनी फनकारी के हुनर से आसानी से कह देते थे. इससे उनके कद और व्यक्तित्व का अंदाजा होता है.

Shabnaz Khanam
Edited By: Shabnaz Khanam

Firaq Gorakhpuri: अजीम शायर और लेखक फ़िराक़ गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय था. उन्हें बीसवीं सदी की उर्दू शायरी के सबसे महान हस्ताक्षरों में से एक माना जाता है. वह जितना अपनी शायरी के लिए जाने जाते हैं, उतने ही मशहूर उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से भी हैं. उनका जन्म 28 अगस्त 1896 को गोरखपुर में हुआ था और उनका निधन 3 मार्च 1982 को हुआ था. बुधवार 3 मार्च को देश के कोने-कोने से आए साहित्यकारों और शायरों के साथ-साथ तमाम लोग उनको याद कर रहे हैं. 

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

उफ़ ले गई है मुझ को मोहब्बत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी अपनी शायरी के जरिए बड़ी से बड़ी बातों को आसानी से कह देते थे, फ़िराक़ को शब्दों का जादूगर कहा जाता है. उन्होंने एक बार कहा था कि हिंदुस्तान में सिर्फ़ ढाई लोगों को अंग्रेज़ी आती है, आज आपको बताएंगे की आखिर वो ढाई लोग कौन हैं? 

पंडित नेहरू को करते थे पसंद 

फ़िराक़ पंडित जवाहरलाल नेहरू का बहुत सम्मान करते थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद जब पंडित नेहरू 1948 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) आये तो उन्होंने फ़िराक़ साहब को मिलने के लिए आनंद भवन बुलाया. 'फ़िराक़ गोरखपुरी-ए पोएट ऑफ़ पेन एंड एक्स्टसीज़' में फ़िराक़ के भतीजे अजयमान सिंह लिखते हैं कि जब फ़िराक़ साहब पंडित नेहरू से मिलने आनंद भवन पहुंचे तो वहां रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें रोक दिया.

सहाय नाम देखकर पहचान नहीं पाए नेहरू

इसपर फ़िराक़ साहब को बहुत गुस्सा आया लेकिन उन्होंने एक पर्ची पर अपना नाम रघुपति सहाय लिखकर रिसेप्शनिस्ट को दे दिया. उन्होंने दूसरी पर्ची पर आर सहाय लिखकर अंदर भेज दिया. पंद्रह मिनट तक इंतजार करने के बाद भी जब कॉल नहीं आई तो उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्हें रिसेप्शनिस्ट पर गुस्सा आ गया. उन्होंने चिल्लाकर कहा कि मैं जवाहरलाल के निमंत्रण पर यहां आया हूं. उनकी आवाज सुनकर पंडित नेहरू ने तुरंत पहचान लिया, और अंदर बुलाया. नेहरू ने कहा कि पर्ची पर आर सहाय लिखोगे तो कैसे पहचानूंगा? 30 सालों से मैं तुम्हें रघुपति के नाम से जानता हूं, तुम आर सहाय कब से बन गए. 

मौत का भी इलाज हो शायद 
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं 

अंग्रेजी पर अच्छी पकड़

फ़िराक़ उन चंद कलाकारों में से हैं जो सिर्फ शायरी तक ही सीमित नहीं हैं. वो काफी पढ़े-लिखे कवि थे. एशिया और यूरोप के मामलों पर गहरी पकड़ थी. उन्होंने धार्मिक दर्शन के साथ-साथ राजनीति पर भी लिखा. कई आलोचनात्मक लेख भी लिखे, मजाक में कहा करते थे, 'हिंदुस्तान में सही अंग्रेज़ी सिर्फ ढाई लोगों को आती है. एक मैं, एक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन और आधा जवाहरलाल नेहरू.'

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03 March 2024, 07:05 AM IST

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