kaifi Azmi birthday Special: कैफ़ी आज़मी उर्दू शायरी के मशहूर शायर थे जिन्हें अदब और हिंदू सिनेमा में बराबर का मान सम्मान मिला. कैफ़ी आज़मी का असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मिजवां गांव में 14 जनवरी 1919 को हुआ था. कैफ़ी के कलम से निकली हुई एक एक लफ्ज़ दिल को छू जाती है. उन्होंने अपनी दिली जज़्बातों को उर्दू के जरिए बखूबी बयां किया. उनके द्वारा लिखे गए नज्मों को पढ़कर आप शायरी के कायल न हो जाए ऐसा हो ही नहीं सकता है तो चलिए आज उनके बर्थडे स्पेशल में उनके द्वारा लिख गए नज्मों और शेर को आपको सामने पेश करते हैं.
मेरे दिल में तू ही तू है दिल की दवा क्या करू
दिल भी तू है जां भी तू है तुझ पे फ़िदा क्या करूं
वक्त ने किया क्या हसीं सितम
तुम रहे न तुम हम रहे न हम
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमाँ जो बस गए
इंसाँ की शक्ल देखने को हम तरस गए
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई
बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो
आंखो में नमी हंसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो
झूकी झूकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूं दुनिया को
तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है कि नहीं
सुना करो मिरी जां इन से उन अफसाने को
सब अजनबी हैं यहां कौन किस को पहचाने
बाहर आए तो मेरा सलाम कह देना
मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने
हुआ है हुक्म कि कैफी को संगसार करो
मसीह बैठे हैं छुप के कहां ख़ुदा जाने
रोज़ बढ़ता हूं जहाँ से आगे
फिर वहीं लौट के आ जाता हूं
बार-ह तोड़ चुका हूं जिन को
उन्हीं दीवारों से ठकराता हूं
कोई कहता था समुदंर हूं मैं
और मेरी जेब में क़तरा भी नहीं
खैरियत अपनी लिखता हूं
अब तो तकदीर में खतरा भी नहीं
मैं ढूंढता हूं जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाए
नए बसर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता
First Updated : Saturday, 13 January 2024