भारत का वो लेखक जिसकी अस्थियों की राख से बनी तख्ती पाकिस्तान की एक दीवार में लगी है

ख़ुशवंत सिंह को लेकर कई तरह की कहानियाँ मौजूद हैं लेकिन आज हम आपको उनके अंदर बसे उस पाकिस्तान प्रेम के बारे में बताने जा रहे हैं जो उनके मरने के बाद तक उनमें समाया रहा.

Tahir Kamran
Edited By: Tahir Kamran

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं

कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं 

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से 
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं

ये नज़्म मुनव्वर राणा ने लिखी थी, लेकिन दर्द लाखों-करोड़ों लोगों का था. नज़्म का नाम “मुहाजिरनामा” है. मुनव्वर साहब ने यह उन लोगों के लिए लिखी जो बंटवारे के समय हिंदुस्तान छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे. बहुत लंबी नज़्म है, हमने यहां कुछ ही शेर पेश किए हैं, वो भी ऐसे जो दोनों मुल्कों से हिजरत करने वाले लोगों की हालत को बयान कर रहे हैं.

India Pak Divide
बंटवारे के दौरान की एक तस्वीर

हमारे बड़ों ने जमीन पर एक लकीर खींचकर गुलदस्ते जैसे मुल्क को दो हिस्सों में तो बाँट दिया था, लेकिन उस वक़्त आम लोगों के दिलों ने कभी इस लकीर को क़बूल नहीं किया. मजबूरियों के चलते अनगिनत लोग अपने ख़ाली जिस्मों को यहां से वहां और वहां से यहां ले तो आए लेकिन अपनी रूह को हिजरत कराने में नाकाम रहे. हिजरत करने वाला लगभग हर शख़्स अपने पुराने दिनों को याद कर रोने लगता है. 

ख़ुशवंत सिंह और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
ख़ुशवंत सिंह और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

ये सब हम आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि आज ख़ुशवंत सिंह की डेथ एनिवर्सरी है. ख़ुशवंत सिंह भी वो शख़्स हैं जो हिजरत के वक़्त अपना बदन ट्रेन में रखकर पाकिस्तान से हिंदुस्तान तो ले आए लेकिन अपनी रूह को पाकिस्तान में ही छोड़ आए थे और उनकी ट्रेन का रुख़ हमेशा पाकिस्तान की तरफ़ ही रहा है. ख़ुशवंत सिंह ने 30 से ज़्यादा नाविल के अलावा दर्जनों अफ़सानों समेत 100 के करीब किताबें लिखी हैं. इसके अलावा वो एक बेहतरीन पत्रकार, इतिहासकार के साथ-साथ डिप्लोमेट के तौर पर भी जाने जाते रहे हैं. खुशवंत सिंह के लेखन से हर कोई वाक़िफ़ है, “डेल्ही”, “ट्रेन टू पाकिस्तान” जैसी उनकी अनगिनत किताबें शोहरत के आख़िरी मक़ाम तक पहुंची हैं. 

Khushwant_Singh
Khushwant_Singh

ख़ुशवंत सिंह ने अपनी ज़िंदगी के जितने दिन हिंदुस्तान में गुज़ारे हैं उनमें से ज़्यादातर पाकिस्तान को याद करते हुए बिताए हैं. पाकिस्तानी पंजाब के सरगोधा ज़िले के हदाली गांव में जन्म लेने वाले ख़ुशवंत सिंह अपने बचपन की गलियों और स्कूल को याद कर रोया करते थे. उनके पाकिस्तान प्रेम का इस बात से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उनकी वसीयत यह थी कि बाद मरने के उनकी राख पाकिस्तान लाई जाए और ऐसा हुआ भी.

Khushwant Singh
वो पत्थर जिसे बनाने में ख़ुशवंत सिंह की राख का हुआ इस्तेमाल (Credit: Social Media)

ख़ुशवंत सिंह पाकिस्तान से एकतरफ़ा मोहब्बत नहीं करते थे, बल्कि पाकिस्तानी भी उन्हें उतना ही अपना मानते हैं जितना हम हिंदुस्तानी. ख़ास तौर पर उनके गाँव हदाली के लोग उन्हें कभी नहीं भुलाना चाहते. जिस स्कूल में ख़ुशवंत ने शुरुआती शिक्षा हासिल की थी उस स्कूल ने अपनी दीवार पर एक तख्ती लगाई हुई है. कहा जाता है कि दीवार में लगी इस तख्ती में ना सिर्फ़ सीमेंट का इस्तेमाल हुआ बल्कि इसमें ख़ुशवंत सिंह की अस्थियों की राख भी शामिल है.

Son of Khushwant Singh
ख़ुशवंत सिंह के बेटे राहुल सिंह (Social Media)

ख़ुशवंत सिंह 1986 में पाकिस्तान गए थे. इस दौरान उन्होंने अपने स्कूल का दौरा भी किया था. यहां पहुंचने के बाद ख़ुशवंत सिंह कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थे. उनकी आंखों से बह रहे आंसुओं ने सब कुछ बयान कर दिया था. उस वक़्त तक भारत और पाकिस्तान के बीच दो जंगें हो चुकी थीं. इसलिए हालात उस समय भी कुछ अच्छे नहीं थे. ऐसे में ख़ुशवंत सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कई अहम बातें भी कही थीं. जो अख़बरों की सुर्ख़ियां बनी थीं.

1986 के अखबार की एक तस्वीर
1986 के अखबार की एक तस्वीर (Credit: Pakistan Geotagging)

अख़बार में लिखी जाने वाली सुर्खियां
पाकिस्तान और भारत का एक दूसरे से ख़ौफ़ महज़ वहम है
हथियारों की ज़बान में बात करने से मामलात संवरने की बजाए बिगड़ेंगे
भारतीय सिक्खों को शिकवा है कि इंदिरा गांधी के कत्ल के बाद उन पर बिला जवाज तशद्दुद (हिंसा) किया जा रहा है
पाकिस्तान को अपना वतन समझता हूं, भारत में हमेशा मुझे पाकिस्तानी समझा गया है.

Khushwant Singh House
ख़ुशवंत सिंह के घर की मौजूदा तस्वीर (Credit: Youtube)

अपने इस दौरे के काफ़ी अरसे बाद ख़ुशवंत सिंह को उनके पाकिस्तान वाले घर की तस्वीरें भी भेजी गईं थी. गांव वालों ने उनके घर के बाहर खुशवंत सिंह के नाम की तख्ती लगाई हुई थी. जिसे देखकर ख़ुशवंत सिंह बहुत खुश हुए थे. उन्होंने तस्वीर भेजने वाले को जवाब में लिखा था,"जहां मैं 90 साल पहले पैदा हुआ उस घर के बाहर अपने नाम की तख्ती देखकर मेरी आंखें ख़ुशी से नम हो गई हैं. ये सोचकर कि मेरे गांव वाले मुझे कितनी मोहब्बत करते हैं, मैं ख़ुशी से मर सकता हूं."

हालांकि फ़िलहाल ख़ुशवंत सिंह का घर बिल्कुल वीरान पड़ा हुआ है. यहां तक कि कोई दीवार भी बाक़ी नहीं रही. उस खाली प्लाट में ही दीवारों की ईंटे पड़ी हुई हैं और घास-फूंस उग चुकी है. लेकिन वो बेरी का पेड़ आज भी उस ज़मीन पर सीना ताने खड़ा जिसकी छांव में ख़ुशवंत सिंह पले पढ़े. हालांकि बेरी समेत कुछ और पेड़ों पर पन्नियां लटकी नज़र आती हैं. जिन्हें देखने से ऐसा लग रहा है कि अब आस-पास के लोग इस जगह पर कूड़ा फेंकते हैं.

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19 March 2024, 10:50 PM IST

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