Mirza Ghalib Birthday: एक ऐसा शेर जिसके बदले ख़ुद की लिखी हुई शायरी की किताब किसी और के नाम करने वाले थे ग़ालिब

Mirza Ghalib Birthday Special: मिर्जा गालिब एक ऐसे महान शायर थे जिनके द्वारा कही गई ग़ज़लों और शायरियों पर मुगल बादशाह भी वाह-वाह करते थे, लेकिन एक बार गालिब को एक शायर का शेर इतना पसंद आया था कि, उसे ख़ुद की लिखी हुई शायरी की किताब उसके नाम करने को तैयार हो गए थे.

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Mirza Ghalib Happy Birthday: जब भी उर्दू शायरी की बात होती है तो जहन में सबसे पहला नाम मिर्ज़ा ग़ालिब का ही आता है. मिर्जा गालिब उर्दू और फारसी भाषा के महान शायर थे. उन्हें उर्दू भाषा में आज तक का सबसे महान शायर माना जाता है. फारसी शब्दों को हिंदी में जोड़ने वाले गालिब ही थे यही वजह है कि, उन्हें तमीर तक़ी "मीर" भी कहा जाता है. आज भी ग़ालिब का नाम अदब से लिया जाता है. उनके द्वारा लिखी गई गजलें और शायरियां आज के युवाओं को भी काफी पसंद आता है. महान शायर मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा के काला महल में हुआ था. उनका असल नाम मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान था तो चलिए उनके जन्मदिन के खास मौके पर उनके बारे में कुछ दिलचस्प बात जानते हैं.

जब एक शेर पर अपना दिवान देने को तैयार हो गए थे ग़ालिब -

सभी को अपनी शेरो शायरी से दीवाना बनाने वाले मिर्ज़ा ग़ालिब एक बार मोमिन के एक शेर सुनकर इंप्रेस हो गए थे. कहा जाता है कि, मोमिन खां का शेर गालिब को इतना पसंद आया था कि, वे अपना सारा दीवान देने को तैयार हो गए थे. दरअसल, एक बार मिर्ज़ा ग़ालिब मोमिन खा से मिलने उनके खानदानी घर कूंचा चेलाव गए थे. इस दौरान बातचीत के सिलसिले के दौरान मुशायरे भी शुरू हो गई. इस दौरान ग़ालिब मोमिन खा से शेर सुनाने को कहते हैं जिसके बाद मोमिन खां एक शेर कहते हैं, ''तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता''. इस शेर को सुनने के बाद मिर्जा गालिब कहते हैं इस शेर पर तो मैं अपना पूरा दीवान आपके नाम मंसूख करने को तैयार हूं.

मिर्जा गालिब के बेहतरीन शेर-

हम को मालुम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख्याल अच्छा है.

इश्क ने 'गालिब' निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के.

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा, लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं.

हजारों ख्वाहिशें ऐसी है कि, हर ख्वाहिश पर दम निकले. हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफ़ा क्या है.

इश्क पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने.

वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं. First Updated : Wednesday, 27 December 2023