Mohammad Alvi Death Anniversary: मोहम्मद अल्वी को तीन दशक से भी पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. अपने सत्तर साल के करियर के दौरान उन्हें मिले अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों में उर्दू शायरी में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए दिल्ली स्थित ग़ालिब अकादमी से ग़ालिब पुरस्कार भी शामिल था. 'चौथा आसमान' और 'खाली मकान' जैसी किताबों में उनकी लेखन शैली की आज भी तारीफ होती है.
उर्दू जबान के मशहूर साहित्यकार मोहम्मद अल्वी का जन्म 10 अप्रैल 1927 को अहमदाबाद, गुजरात में हुआ था. वह एक भारतीय कवि थे जो उर्दू ग़ज़ल लिखने के लिए जाने जाते थे. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गृह नगर में प्राप्त की. वहीं बाद में उन्होंने दिल्ली के जामिया इस्लामिया से उच्च शिक्षा पूरी की. 29 जनवरी 2018 को ये महान लेखक इस दुनिया को अलविदा कह गया था.
मोहम्मद अल्वी को उर्दू शायरी के महान शायर के तौर पर जाना जाता है. अपने लेखन की वजह से अल्वी एक बार बुरी तरह से फंस गए थे. मामला इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उनके खिलाफ एक फतवा भी जारी किया गया था. ये सारा बवाल इनकी लिखी दो पंक्तियों की वजह से हुआ था.
मोहम्मद अल्वी जो ने ग़ज़ल लिखी थी उससे मुस्लिम उलेमा नाराज हो गए थे. दरअसल, मोहम्मद अल्वी ने अहमदाबाद में अपने नदी किनारे स्थित बंगले के बरामदे में बैठकर कुछ पंक्तियों की ग़ज़ल लिखी थी, तो उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि इससे वो अपनी मुसीबतों को बढ़ावा दे रहे हैं. लेकिन बाद में विवाद बढ़ने के बाद अल्वी ने इस शेर को संकलन से हटा दिया था.
मोहम्मद अल्वी की ग़ज़ल में दो पंक्तियां थी जिसपर बरेली के दारुल उलूम मंज़र-ए-इस्लाम के सहयोगी, दारुल उलूम शाह-ए-आलम, अहमदाबाद ने आपत्ति जताई थी. इस ग़ज़ल में कवि ने ईश्वर से दुनिया को बचाने के लिए एक अच्छा पैगंबर भेजने की बात की थी. वो कुछ इस तरह से थीं. 'अगर तुझको फुरसत नहीं हो तो न आना...मगर एक अच्छा नबी भेज देना.' उन्होंने देश भर में और पाकिस्तान में भी इस ग़ज़ल को सुनाया, इसके बाद ही अहमदाबाद के एक इस्लामिक धार्मिक स्कूल ने उन पर फतवा जारी किया.
अल्वी को इसके बाद काफिर करार दे दिया गया था, उनको बोला गया कि या तो वो अपराध पर पश्चाताप करें नहीं तो उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाएगा. इस दौरान कई बड़े शायरों के बयान भी सामने आए थे. इसपर प्रसिद्ध उर्दू कवि निदा फ़ाज़ली ने कहा था कि 'अल्वी के ख़िलाफ़ फ़तवा उस प्रवृत्ति का विस्तार है जो बहुत पहले शुरू हुई थी. यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जिस पर प्रगतिशील ताकतों द्वारा अंकुश लगाने की आवश्यकता है.'
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अल्वी को काफिर करार देने के बाद फतवा जारी करने वाले मुफ्ती का बयान सामने आया कि 'अल्वी मुस्लिम नहीं रह गए हैं, इसलिए उसे दोबारा मुस्लिम बनने के लिए कलमा (दीक्षा प्रार्थना) दोबारा पढ़ना चाहिए, अपनी पत्नी से दोबारा शादी करनी चाहिए और अपने लिखे पर सार्वजनिक रूप से पश्चाताप करना चाहिए. ऐसा न करने पर उसे सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है.
प्रतिष्ठित उर्दू विद्वानों के परिवार से ताल्लुक रखने वाले अल्वी फतवे से हैरान थे. हालांकि लेखक सलमान रुश्दी और तस्लीमा नसरीन के जीवन में आए नाटकीय मोड़ को देखते हुए ये कोई नई बात नहीं थी. दारुल उलूम की पत्रिका में फतवा छपने के एक हफ्ते से भी कम वक्त में वह अपने परिवार के साथ बंबई चले गए. फतवा एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा था. विवाद को बढ़ते देख अहमदाबाद में बहुत से लोगों ने खुले तौर पर अल्वी का समर्थन नहीं किया था. First Updated : Monday, 29 January 2024