Munawwar Rana: सोनिया गांधी की तारीफ़ में ये क्या लिख गए मुनव्वर राणा, पढ़कर आप भी हो जाएँगे भावुक

Munawwar Rana Famous Poetry: मुनव्वर राणा ने एक बढ़कर एक शायरी लिखी है. कई बार उन्हें अपनी शायरी की वजह से विरोध का सामना करना पड़ जाता था. आज हम आपको उनकी एक ऐसी ही नज्म पढ़वाने जा रहे हैं.

Tahir Kamran
Edited By: Tahir Kamran

Munawwar Rana Poetry on Sonia Gandhi: उर्दू के मशहूर शायर मुनव्वर राणा रविवार को इस दुनिया से अलविदा कह गए. देर रात कार्डियाक अरेस्ट के चलते उनका निधन हो गया. मुनव्वर राणा 71 वर्ष के थे, वे काफ़ी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. पिछले बरस भी मुनव्वर राणा को काफ़ी दिनों तक वेंटिलेटर पर रखा गया था.

मुनव्वर राणा यूँ तो माँ पर शायरी के लिए मशहूर हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि उन्होंने सिर्फ़ माँ पर लिखा है. हाँ इतना ज़रूर है कि मुनव्वर राणा ने माँ के लिए जिस अंदाज में शेर लिखे हैं शायर वो उनसे पहले किसी ने नहीं लिखे. मुनव्वर राणा एक समाजी शायर थे. उन्होंने वक्त-वक्त पर हुकूमतों के ख़िलाफ़ भी कलम को चलाया. हाल ही में वो भारतीय जनता पार्टी की सरकार उनके पॉलीसियों से काफ़ी नाराज़ दिखाई दे रहे थे, लेकिन क्या आपको पता है कि मुनव्वर राणा को उनकी एक नज़्म की वजह से कांग्रेसी होने को टैग लग गया था. 

अगर आप नहीं जानते हैं तो फिर आज हम आपको वो नज़्म पढ़वाने जा रहे हैं. साथ ही यह भी बताएँगे कि आख़िर इस नज़्म में ऐसा क्या है जिसकी वजह से उनपर कांग्रेसी होने का टैग लग गया था. दरअसल मुनव्वर राणा ने सोनिया गांधी की तारीफ़ में एक बहुत शानदार नज़्म लिखी थी. ये उस वक़्त की बात है जब विपक्ष के ज़रिए सोनिया गांधी पर विदेशी होने जैसे आरोप लगाए जा रहे थे. ऐसे वक़्त में मुनव्वर राणा के ज़रिए सोनिया गांधी के पक्ष में लिखी गई नज़्म ने तहलका मचा दिया था. पढ़िए मुनव्वर राणा की पूरी नज़्म.


रुख़सती होते ही मां-बाप का घर भूल गयी
भाई के चेहरों को बहनों की नज़र भूल गयी
घर को जाती हुई हर राहगुज़र भूल गयी
मैं वो चिडि़या हूं कि जो अपना शज़र भूल गयी

मैं तो भारत में मोहब्बत के लिए आयी थी
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी
नफ़रतों ने मेरे चेहरे का उजाला छीना
जो मेरे पास था वो चाहने वाला छीना
सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना
मुझसे गिरजा भी लिया, मुझसे शिवाला छीना

अब ये तक़दीर तो बदली भी नहीं जा सकती
मैं वो बेवा हूं जो इटली भी नहीं जा सकती
आग नफ़रत की भला मुझको जलाने से रही
छोड़कर सबको मुसीबत में तो जाने से रही
ये सियासत मुझे इस घर से भगाने से रही
उठके इस मिट्टी से, ये मिट्टी भी तो जाने से रही

सब मेरे बाग के बुलबुल की तरह लगते हैं
सारे बच्चे मुझे राहुल की तरह लगते हैं
अपने घर में ये बहुत देर कहाँ रहती है
घर वही होता है औरत जहाँ रहती है 
कब किसी घर में सियासत की दुकाँ रहती है
मेरे दरवाज़े पर लिख दो यहाँ मां रहती है

हीरे-मोती के मकानों में नहीं जाती है,
मां कभी छोड़कर बच्चों को कहाँ जाती है?
हर दुःखी दिल से मुहब्बत है बहू का जिम्मा
हर बड़े-बूढ़े से मोहब्बत है बहू का जिम्मा
अपने मंदिर में इबादत है बहू का जिम्मा

जिस देश में आयी थी वही याद रहा
हो के बेवा भी मुझे अपना पति याद रहा
मेरे चेहरे की शराफ़त में यहाँ की मिट्टी
मेरे आंखों की लज़ाजत में यहाँ की मिट्टी
टूटी-फूटी सी इक औरत में यहाँ की मिट्टी
कोख में रखके ये मिट्टी इसे धनवान किया,
मैंन प्रियंका और राहुल को भी इंसान किया

सिख हैं,हिन्दू हैं मुलसमान हैं, ईसाई भी हैं
ये पड़ोसी भी हमारे हैं, यही भाई भी हैं
यही पछुवा की हवा भी है, यही पुरवाई भी है
यहाँ का पानी भी है, पानी पर जमीं काई भी है
भाई-बहनों से किसी को कभी डर लगता है
सच बताओ कभी अपनों से भी डर लगता है
हर इक बहन मुझे अपनी बहन समझती है
हर इक फूल को तितली चमन समझती है
हमारे दुःख को ये ख़ाके-वतन समझती है

मैं आबरु हूँ तुम्हारी, तुम ऐतबार करो
मुझे बहू नहीं बेटी समझ के प्यार करो

calender
15 January 2024, 12:27 AM IST

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