जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो...पढ़ें जुर्म पर लिखे शेर...
Best Sher On Jurm: आदमी की पहचान उसके सही और गलत कामों से होती है. वहीं जुर्म कोई भी कर सकता है. अगर कोई यह कहता है कि वह कभी गलत करता ही नहीं तो समझिए कि वह झूठ बोल रहा है. इस बीच आज पेश है बेहतरीन शायरों के जुर्म पर लिखे शेर. इन शायरों ने जुर्म को अपने लफ्जों से समझाने का प्रयास किया है.
Best Sher On Zurm: किसी भी आदमी की पहचान उसके सही और गलत कामों से होती है. वहीं जुर्म कोई भी कर सकता है. अगर कोई यह कहता है कि वह कभी गलत करता ही नहीं तो समझिए कि वह झूठ बोल रहा है. इस बीच आज पेश है बेहतरीन शायरों के जुर्म पर लिखे शेर. इन शायरों ने जुर्म को अपने लफ्जों से समझाने का प्रयास किया है.
इस शहर में चलती है हवा और तरह की
मंसूर उस्मानी
वो ख़्वाब क्या था कि जिस की हयात है ताबीर
वो जुर्म क्या था कि जिस की सज़ा है तन्हाई
ज़िया जालंधरी
लोग समझे अपनी सच्चाई की ख़ातिर जान दी
वर्ना हम तो जुर्म का इक़रार करने आए थे
ज़फ़र गौरी
जुर्म में हम कमी करें भी तो क्यूँ
तुम सज़ा भी तो कम नहीं करते
जौन एलिया
शामिल नहीं हैं इस जुर्म में जनाब
एक मैं ने ही उगाए नहीं ख़्वाबों के गुलाब
तू भी इस जुर्म में शामिल है मिरा साथ न छोड़
मज़हर इमाम
बेहतर दिनों की आस लगाते हुए 'हबीब'
हम बेहतरीन दिन भी गँवाते चले गए
हबीब अमरोहवी
हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा
जो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा
साहिर लुधियानवी
सदियों के बाद होश में जो आ रहा हूँ मैं
लगता है पहले जुर्म को दोहरा रहा हूँ मैं
ज़ुल्फ़िकार नक़वी