गुरु गोबिंद सिंह की जयंती पर जानें उनके चारों साहिबजादों की शहादत की कहानी

Guru Gobind Singh Jayanti: मुगलों ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से बदला लेने के लिए सरसा नदी पर हमला कर दिया. इस दौरान गुरु का परिवार उनसे अलग हो गया था.

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Guru Gobind Singh Jayanti: आज पूरा देश श्री गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मना रहा है, सिखों के दसवें गुरू ने अपने जीवन काल में लोगों के ऊपर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है. मगर क्या आप जानते हैं कि, गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवा दिया था. आज हम आपको बताते हैं कि, किस प्रकार से उनके साहिबजादों ने अपनी जान की बलि दी थी. 

मुगलों ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से लिया बदला 

साल1705 की बात है, जब मुगलों ने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से बदला लेने के लिए सरसा नदी पर हमला कर दिया. इस दौरान गुरु का परिवार उनसे अलग हो गया था. जिसके बाद छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह एवं माता गुजरी अपने रसोईए गंगू संग उसके घर पर रहने चले गए थे. रात को जब नौकर गंगू ने माता गुजरी के पास मुहरें देखी तो उसके मन में लालच पैदा हुआ, जिसके बाद उसने माता गुजरी व दोनों साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह को सरहिंद के नवाब वजीर खां के सिपाहियों के हवाले कर दिया था.  

वजीर खां ने किया अत्याचार 

वहीं वजीर खां ने छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी को पूस की सर्द रातों में ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया था. जो कि चारों तरफ से खुला हुआ था. इस कैद खाने में रहने के दौरान माता गुजरी जी ने छोटे साहिबजादों को करीब 3 दिन धर्म की रक्षा के लिए सीस न झुकाने एवं धर्म न बदलने का पाठ पढ़ाया करती थी. यही शिक्षा देकर माता गुजरी जी साहिबजादों को नवाब वजीर खान की कचहरी में भेजा करती थी.

जबकि 7 और 9 वर्ष से भी कम आयु के साहिबजादों ने कभी भी नवाब वजीर खां के समक्ष शीश नहीं झुकाया. न ही अपने धर्म बदला. जिस बात से वजीर खान को बहुत गुस्सा आया, उसने वर्ष 1705 के 26 दिसंबर को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया था. दूसरी तरफ इस समाचार को सुनते ही माता गुजरी ने अपना शरीर त्याग दिया था. 

गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब की कहानी 

आपको बता दें कि, जिस स्थान पर साहिबजादों को जिंदा चुनवा दिया गया था, उस स्थान पर श्री फतेहगढ़ साहिब गुरुद्वारा बना हुआ है. वहीं यहां मौजूद ठंडा बुर्ज सिख इतिहास की कहानी का एक विशेष भाग है. मासूम साहिबजादों की इस शहादत ने सारे लोगों को पूरी तरह सोचने पर मजबूर कर दिया था. इतना ही नहीं श्री गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों में दो बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह जिन्दा बचे, दरअसल इन दोनों ने भी 6 दिसंबर, 1705 को हुई चमकौर की युद्ध में अपनी जान गवां दी थी.  First Updated : Wednesday, 17 January 2024