Ramdhari Singh Dinkar: महात्मा गांधी ने हर मुमकिन कोशिश की कि आजादी की जंग हिंसक ना हो, उनके साथ चलने वाले हजारों लाखों लोगों में बहुत से ऐसे भी जो अंग्रेजों से दो-दो हाथ होने की ख्वाहिश रखते थे लेकिन गांधी जी ने हमेशा इसका विरोध किया. ऐसे में सबसे बड़ा हथियार बनकर उभरा था 'कलम'. अनगिनत लोगों ने कलम को हथियार बनाया और आजादी की जंग में योगदान दिया. इन्हीं कलमकारों में से एक थे रामधारी सिंह दिनकर, जिन्हें राष्ट्रकवि का दर्जा हासिल है.
रामधारी सिंह दिनकर 1908 को पैदा हुए जब देश अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी में जी रहा था. जब वो दो बरस के थे तो उनके पिता का देहांत हो गया था. जरा होश संभालते ही बहुत कम उम्र में ही उन्हें जिम्मेदारियों का बोझ उठाना पड़ा. दिनकर की बहुत मुश्किलों में कटी लेकिन घर में हर दिन होने वाले रामचरितमानस के पाठ की वजह से उनके अंदर एक कवि समा गया था. एक ऐसा कवि जिसने आजादी की जंग में अहम योगदान दिया.
दिनकर ने अपनी रचनाओं में वीर रस का भरपूर इस्तेमाल किया और आम लोगों के दिलों में राष्ट्र के प्रति फिक्र पैदा की. छायावाद के धुएं को उड़ाते ही दिनकर की 'रेणुका' आई तो हिंदी साहित्य में उसकी गूंज ने सभी को हैरान कर दिया. एक नई शैली के साथ रेणुका ने अंग्रेजों के भी कान खड़े कर दिए थे. उनकी रचना रेणुका की वजह से अंग्रजी हुकूमत ने उनपर लगाम लगाने की कोशिश की लेकिन नाकाम हुई. दिनकर से कहा गया था कि वो अपनी रचनाएं छपवाने से पहले इजाज़त लें, हालांकि दिनकर ने साफ इनकार कर दिया था.
हुआ भी कुछ ऐसा ही, क्योंकि दिनकर ने रेणुका के बाद 'हुंकार' लिखी और हुंकार की हुंकार से एक बार फिर अंग्रेजों के कान खड़े हो गए. क्योंकि इस रचना ने नौजवानों के बीच क्रांति को जगा दिया था. हुंकार के बाद से ही दिनकर को एक क्रांति ला देने वाला लेखक माना जाने लगा था. अंग्रेजी हुकूमत ने उनसे फिर कहा कि वो अपनी रचनाएं छपवाने से पहले सरकार के इजाज़त लें. लेकिन दिनकर ने फिर कह दिया कि अगर मैं लिखने से पहले अनुमति मांगूंगा तो फिर कविता क्या फायदा?
दिनकर का एक और रूप भी था, प्रेम का रूप. दिनकर ने श्रंगार में लिखी कविताओं से भी लोगों के दिलों में गहरी जगह बनाई है. First Updated : Wednesday, 24 April 2024