Who Was Turram Khan: 'खुद को तुर्रम खान समझते हो', तुम क्या तुर्रम खान हो, ऐसी कई कहावत है जो अक्सर सुनने को मिलता है लेकिन बहुत लोग ऐसे हैं जो इस कहावत के पीछे की कहानी नहीं जानते है. तो चलिए जानते हैं कि, असल में तुर्रम खान था कौन और उसपर ये कहावत क्यों बनी है.
भारत का एक वीर योद्धा था जिसे दक्कन के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. तुर्रम खान को उनकी वीरता और साहस के लिए जाना जाता है. तुर्रम खान ने पहली लड़ाई 1857 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लड़ी थी. इस लड़ाई में उनकी भूमिका को एक साहसी, बहादुर और निडर हीरो के रूप में रही थी जो आजकल फिल्मों में देखने को मिलता है. हालांकि इस लड़ाई की शुरुआत मंगल पांडे ने बैरकपुर से की थी जिसके बाद ये संग्राम भारत के कई शहरों में फैल गया जिसमें से एक हैदरबाद भी शामिल था.
जानकारी के मुताबिक, तुर्रम खान ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए लगभग 6 हजार लोगों को एक मत कर अपनी फौज तैयार की थी. तुर्रम खान ने ये फौज क्रांतिकारी चीदा खान को अंग्रेज के चंगुल से छुड़ाने के लिए तैयार किया था. इसी सेना के साथ उन्होंने ब्रिटिश रेजीडेंसी पर हमला किया था. अंग्रेजों ने बड़ी सेना के साथ उसका डटकर सामना किया. इस लड़ाई के बाद अंग्रेज तुर्रम खान को पकड़ने के लिए कई बार कोशिश किए यहां तक कि, ईनाम भी रखा लेकिन वह अंग्रेजों के हाथ नहीं आए.
अंग्रेजों ने तुर्रम खान को पकड़ने के लिए कई कोशिश लेकिन वह हर बार बच के निकल गए लेकिन कुछ समय बाद तुपरण के जंगलों में तालुकदार मिर्जा कुर्बान अली बेग ने उन्हें पकड़ लिया. उसके बाद कुछ समय तक उन्हें जेल की कैद में रखा गया और फिर एक दिन गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई. यही नहीं अंग्रेजों ने उनके शव के साथ भी बर्बरता किया ताकि कोई और उनके खिलाफ विद्रोह करने से डरे. अंग्रेजों ने तुर्रम खान को गोली मारने के बाद उनके शव को शहर के केंद्र में लटका दिया ताकि लोग देख तो उससे डरे.
आपको बता दें कि, संसद में तुर्रम खान का नाम लेना मना है. दरअसल, साल 2022 में लोकसभा सचिवालय ने संसद में इस्तेमाल न होने वाले कुछ शब्दों की लिस्ट जारी की थी जिसमें शकुनि, दलाल के साथ साथ तुर्रम खान का नाम शामिल था. First Updated : Monday, 19 February 2024