अंग्रेजों के पैसों पर पलता था ये मुगल बादशाह, मिली ऐसी मौत जिसे सुनकर कांप उठेगी रूह
Bahadur Shah Zafar: बहादुर शाह जफर मुगल साम्राज्य का आखिरी बादशाह था. अंग्रेजों के पैसों पर अपनी जिंदगी गुजारने वाले बहादुर शाह के जीवन के आखिरी दिन बेहद कष्ट भरे थे. 1857 के विद्रोह के बाद, जब दिल्ली में अंग्रेजी हुकूमत ने सत्ता पर कब्जा कर लिया, तो जफर को एक कैदी के रूप में पेश किया गया. जिसके बाद उसे उम्र भर के लिए रंगून भेज दिया गया.
Bahadur Shah Zafar: मुगल साम्राज्य का आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर था. इतिहास के मुताबिक बहादुर शाह जफर अंग्रेजों के पैसों पर अपना और अपने परिवार का खर्च चलाता था. 1857 के विद्रोह के बाद, जब दिल्ली में अंग्रेजी हुकूमत ने सत्ता पर कब्जा कर लिया, तो जफर को एक कैदी के रूप में पेश किया गया.
बहादुर शाह जफर जो कभी शान-ओ-शौकत से दिल्ली पर राज करता था, उसने अपने जीवन के आखिरी साल उसने रंगून में बिताए, और उसकी मौत भी चुपके से, बेमज़ार तरीके से हुई. यह कहानी भारत के आखिरी मुगल बादशाह की है, जो कभी शाही रुतबे का मालिक था, और जिसने अपनी मौत तक अपने स्वाभिमान के साथ संघर्ष किया.
दिल्ली से रंगून तक की दर्दनाक यात्रा
7 अक्टूबर 1858 की सुबह, बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने दिल्ली से चुपके से निकाल दिया. बैलगाड़ी में सवार होकर वह अपने वतन को छोड़कर रंगून के लिए निकल पड़ा. यह वही शहर था जिसे 332 साल पहले उसके पूर्वज बाबर ने फतह किया था. लेकिन अब यह ब्रिटिश ताज के अधीन हो चुका था. इसके बाद, उसने रंगून में कैद के बाकी दिन बिताए.
अदालत में आखिरी बादशाह की पेशी
27 जनवरी 1858 को जफर को फौजी अदालत के सामने पेश किया गया. अंग्रेजों ने उन्हें ‘कंपनी की प्रजा’ बना दिया, और उन्हें फौजी नियमों के तहत आरोपित किया गया. मुकदमे के दौरान कई गवाह और सबूत पेश किए गए, लेकिन जफर ने अधिकतर दस्तावेजों और आरोपों को नकार दिया. अदालत की कार्रवाई के बीच वह उदासीन हो जाते थे और ऊंघने लगते थे.
अदालत का फैसला
9 मार्च 1858 को जफर को निर्वासन की सजा सुनाई गई. हालांकि, अंग्रेजी हुकूमत ने जफर की उम्र और उसकी हालत को देखते हुए मौत की सजा नहीं दी, बल्कि उसे अंडमान या किसी अन्य दूरस्थ स्थान पर भेजने का आदेश दिया गया. अंततः उन्हें रंगून भेजा गया.
रंगून में आखिरी दिन
रंगून में जफर और उसके परिवार के लिए अंग्रेजों ने एक छोटा सा मकान आवंटित किया, जिसमें चार कमरे थे. उनकी सारी गतिविधियों पर नज़र रखी जाती थी. समुद्र की ओर देखने के अलावा जफर के पास समय बिताने के लिए और कुछ नहीं था. कागज-कलम पर पाबंदी थी, लेकिन वह कभी-कभी अपनी गजलों के शेर दीवारों पर लिखते थे. 1862 में बूढ़े हो चुके बहादुर शाह जफर की हालत काफी नाजूक हो चुकी थी. वो कुछ भी निगल पाने या पचाने में असमर्थ था.
बहादुर शाह जफर की मौत
87 साल की उम्र में 7 नवंबर 1862 की सुबह जफर का निधन हो गया. उनकी मौत की खबर को कम से कम लोगों तक पहुंचाने का इंतजाम किया गया. उनके जनाजे में केवल उनके दोनों बेटे और एक नौकर शामिल थे. उसी शाम उन्हें रंगून में मेन गार्ड के पीछे गुपचुप तरीके से दफना दिया गया. कैप्टन नेल्सन डेविस ने लिखा कि कब्र को इस तरह से छिपा दिया गया कि किसी को यह पता नहीं चलेगा कि भारत का आखिरी मुगल बादशाह कहां दफन है.