ॐलोक आश्रम: शारीरिक और मानसिक परेशानियों से कैसे मुक्ति दिला सकता है आध्यात्म? भाग-2

ॐलोक आश्रम: शारीरिक और मानसिक परेशानियों से कैसे मुक्ति दिला सकता है आध्यात्म? भाग-2

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04 October 2022, 06:21 PM IST

उस अन्तर्रात्मा को हम कुछ तर्क देकर शांत कर देते हैं। जैसे एक व्यक्ति चोरी करता है। जब वह किसी के यहां चोरी करने जाता है तो उसको पता चलता है कि चोरी करना गलत काम है लेकिन जब वह चुरा कर लाता है और उसकी अन्तर्रात्मा उसको धिक्कारती है तो वह उसको जस्टीफाई करने लगता है कि क्या हुआ, इतना अमीर आदमी है, थोड़ा उससे ले ही लिया क्या फर्क पड़ गया। मैं भूखा हूं, लोग मेरे ऊपर तरस नहीं खा रहे, मैं गरीब हूं मेरा शोषण किया गया है। बहुत सारे ऐसे तर्क वो अपने पक्ष में ढूंढ़ लेता है और अपनी अन्तर्रात्मा को शांत कर देता है।

झूठ बोलने वाले व्यक्ति किसी को धोखा देने वाले व्यक्ति इस तरह से होते हैं जिसके बारे में उपनिषद भी कहते हैं कि ये आत्मा का हनन करने वाले लोग होते हैं। जब कोई व्यक्ति अपनी आत्मा का हनन करता है, अपने आप से झूठ बोलता है, अपने आप को पीड़ा पहुंचाता है तो ऐसे में हमारे शरीर को जो केमिकल बैलेंस है वो बिगड़ जाता है और बहुत सारे मानसिक रोग हमारे अंदर आ जाते हैं। हमारा हार्मोनल बैलेंस बिगड़ने के साथ हमें शुगर हो जाता है, हमें बीपी हो जाता है, हमें हाइपरटेंशन हो जाता है। ये रोग अनेकानेक रोगों को उत्पन्न कर देते हैं जो लंबे समय तक चलने वाले होते हैं। हम अगर आध्यात्मिक बन जाते हैं तो आध्यात्मिक बनने के साथ हमें उन मूल्यों पर चलना पड़ेगा जो शाश्वत मूल्य हैं।

हमें सत्य पर चलना पड़ेगा, हमें अहिंसा पर चलना पड़ेगा, हमें स्तेय पर चलना पड़ेगा। हम केवल सत्य पर ही चलना चालू कर दें तो बाकी गुण अपने आप आ जाएंगे। जैसे मान लीजिए कि हम सत्यवादी हैं हम सत्य बोलते हैं तो सत्य बोलते हैं तो हम सबसे पहले बात कि हम चोरी नहीं करेंगे क्योंकि अगर चोरी करेंगे और हम सत्य बोलते हैं तो पहली चोरी हमारी अंतिम चोरी होगी क्योंकि सत्य बोलने के कारण हम पकड़े जाएंगे। हम सत्य बोलते हैं तो हम और कोई गलत काम नहीं कर सकते क्योंकि गलत काम करेंगे और हमसे पूछा जाएगा तो हम बोल देंगे और हम सत्य बोलेंगे। इसी तरह से जब आदमी आध्यात्मिक हो जाता है तो आध्यात्मिक होने के साथ उसके जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन आता है।

जैसे ही व्यक्ति अपने अंदर देखना चालू करता है उसकी जरूरतें लगातार कम होती जाती हैं। जब व्यक्ति बाहर की ओर देखता है तो उसकी जरूरतें बढ़ती जाती हैं। जब हम बाहर देखते हैं तो हम अच्छे कपड़े चाहते हैं क्योंकि बाहर लोग अच्छे-अच्छे कपड़े पहनें तो उनको देखकर हम भी अच्छे कपड़े चाहते हैं। हम अच्छी कारें चाहते हैं क्योंकि हमारे आसपास अच्छी-अच्छी कारें हैं। हम अच्छा घर चाहते हैं हम अच्छी और सुंदर स्त्री चाहते हैं। हमारी इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। हमें एक मिलती है हम दूसरी चाहते हैं कि इससे भी बड़ी गाड़ी मिल जाए इससे भी बड़ा घर मिल जाए। जब हमारी दृष्टि बाहर होती है तो हम वो चीजें चाहते हैं। उनमें से जितनी भी चीजें हमें मिलती हैं वह थोड़े समय के लिए हमें संतुष्टि दे सकती है, लंबे समय के लिए संतुष्टि नहीं दे पाती।

जब हम अंदर देखना चालू करते हैं तो जो अंदर से हमें आनंद मिलना चालू होता है रस मिलना चालू होता है वह बाहर की चीजों से जो रस मिल रहा है उससे बहुत उच्च क्वालिटी का होता है और अच्छा होता है तो धीरे-धीरे हमें अपने अंदर झांकना चालू कर देते हैं। जब हम अपने अंदर रस लेने लगते हैं तो जो बाहर की चीजें थीं वो धीरे-धीरे महत्वहीन हो जाती है। हम किस कार में बैठे हैं वो महत्वहीन हो जाती है हम किस तरह के कपड़े पहनें वो महत्वहीन हो जाती है। हम दूसरों से तुलना करना छोड़ देते हैं। हम संतुष्ट होने लगते हैं अपने जीवन में। और जब जीवन में आध्यात्मिक रूप से संतुष्ट होने लगते हैं तो धीरे-धीरे हमारे अंदर जो कैमिकल अंसतुलन थे वो भी शांत हो जाते हैं। हम अपनी आत्मा में संतुष्ट होते हैं। स्वाभाविक जीवन जीते हैं।

जिस तरह का जीवन जीने के लिए हम बने हैं उस तरह का जीवन जीने लगते हैं। जो व्यक्ति आध्यात्मिक होता है आध्यात्म में चलता है वो कम बीमार होता है। क्योंकि वह सहज जीवन जीता है अपने स्वभाव में जीवन जीता है। जंगल के जानवरों को आपने शायद ही बीमार पड़ता देखा होगा और अगर बीमार पड़ते भी हैं तो प्रकृति के सानिध्य में वो ठीक हो जाते हैं और अपना जीवन जीते रहते हैं उनका कोई डॉक्टर नहीं होता। जब उन्हीं जानवरों को आप पालतू बनाकर उन्हें अपने घर में ऱखते हैं, उनकी कोई जगह बनाकर रखते हैं तो वो थोड़ा ज्यादा बीमार पड़ते हैं।

उनके लिए कभी आपको डॉक्टर बुलाना पड़ता है। इंसान ने अपने जीवन को ज्यादा कृत्रिम बना लिया। मानसिक रूप से बड़ा गूढ़ हो गया है। सोचता कुछ है, बोलता कुछ है, करता कुछ है। तीनों जगह एक सिस्टम बिगड़ गया है। इसके कारण से व्यक्ति ज्यादा बीमार पड़ता है क्योंकि उसका जीवन चेतना के अनुसार नहीं है। चेतना का प्रवाह समतल नहीं है। चेतना का प्रवाह समतल नहीं होने के कारण वह जो कार्य करता है वो उसकी अन्तर्रात्मा के विपरीत होते हैं। जो उसकी मानसिक संरचना है उसके वो विपरीत काम कर रहा है। उसके विपरीत कार्य से उसकी मानसिक संरचना में व्यवधान आ जाता है। मानसिक संरचना में व्यवधान आने के कारण उसके शरीर का जो सिस्टम है वह सिस्टम बिगड़ जाता है। हमारा शरीर ऐसा है कि शरीर और मन दोनों मिले हुए हैं। जिस तरह के हम विचार करेंगे उस तरह के केमिकल हमारे शरीर में रिलीज होंगे और वही केमिकल हमारे शरीर की कार्यविधियों को नियंत्रित करेंगे।

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04 October 2022, 06:21 PM IST

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