ॐलोक आश्रम: शारीरिक और मानसिक परेशानियों से कैसे मुक्ति दिला सकता है आध्यात्म? भाग-1

ॐलोक आश्रम: शारीरिक और मानसिक परेशानियों से कैसे मुक्ति दिला सकता है आध्यात्म? भाग-1

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

हमें सबसे पहले आध्यात्म के अर्थ को समझना जरूरी है। आध्यात्म का मतलब है कि जो आत्मा में हो। जब हम अपनी आत्मा पर काम करें, हम अपने आप पर काम करें। वस्तुत: हम हमेशा अपने शरीर पर ही काम करते हैं। हम अपने शरीर को स्वस्थ रखने की कोशिश करते हैं। हम सोचते हैं अगर हम अच्छा खाना खा लेंगे तो हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा। अच्छे कपड़े पहन लेंगे तो हम अच्छे दिखेंगे। हम अपनी आत्मा पर काम नहीं करते हैं। आत्मा बेसिक कटेंट है जिससे शरीर जुड़ा हुआ है। अगर हम अपनी आत्मा पर काम करना चालू करेंगे तो शरीर अपने आप स्वस्थ रहेगा।

शरीर अपने आप अच्छा काम करने लगेगा। रोग क्यों होते हैं हम बीमार क्यों पड़ते हैं। बहुत समय पहले यह माना जाता था कि जिसको अच्छा खाना मिलता है, पौष्टिक आहार मिलता है वह व्यक्ति स्वस्थ रहता है। जो कुपोषण का शिकार है जिसको खाना कम मिल पाता है और जिन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाती है। वो ज्यादा बीमार होगा या उनकी मृत्यु दर ज्यादा होगी। लेकिन जब कोरोना वायरस आया और देखा गया कि यूरोप में जहां बेस्ट क्वालिटी का फूड उपलब्ध था, उनकी अच्छी हाइजेन थी, वहां की स्वास्थ्य सुविधाएं उत्तम थीं। बावजूद उसके वहां मौतें बहुत ज्यादा हुईं। जबकि जो विकासशील और अविकसित देश थे उनके मुकाबले वहां उतना ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।

मनुष्य तन और मन दोनों से मिलकर बना है। आत्मा और शरीर ये दो अंग हैं। शरीर निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है हमारी अन्तर्रात्मा। अगर हमारा मन हमारी अन्तर्रात्मा शुद्ध रहती है पवित्र रहती है तो रोग हमें छू भी नहीं सकते। चरक संहिता में चरक कहते हैं कि दो तरह की बातें होती हैं दो तरह के कारण होते हैं जिनसे हम बीमार पड़ते हैं जिनसे हमें रोग होता है। पहला तो वह यह कहते हैं इन्द्रिय और अर्थ का जो संयोग होता है अगर वह गलत हो गया तो बाहर जो चोट लगती है वह कारण हो गया।

उदाहरण के तौर पर जैसे आंख इन्द्रिय है और वो देखने का कार्य करती है दुनिया को। इसमें बाहर से कोई वस्तु आकर लग गया या फिर कोई तेज प्रकाश हमारी आंखों पर निरंतर पड़ता रहा तो हमारी ज्योति क्षीण हो जाती है। इसी तरह कोई दुर्घटना में बाहर से कोई चीज हमारे अंदर प्रवेश करती है तो हमें चोट लगती है और हम घायल हो जाते हैं। ये हमारी बिमारियों का हमारे रोग का हमारी दुर्घटना का एक कारण है।

दूसरे तरह के लोगों के बारे में वो कहते हैं कि प्रज्ञा के प्रति जो अपराध होता है उसका परिणाम रोग होता है। जैसे हम कई बार गलत काम करते हैं। जो हम गलत काम करते हैं उसे समाज से लोगों से छुपा देते हैं लेकिन हमारी अन्तर्रात्मा हमें धिक्कारती है कि तुमने गलत काम किया है। उस अन्तर्रात्मा को हम कुछ तर्क देकर शांत कर देते हैं। जैसे एक व्यक्ति चोरी करता है। जब वह किसी के यहां चोरी करने जाता है तो उसको पता चलता है कि चोरी करना गलत काम है लेकिन जब वह चुरा कर लाता है और उसकी अन्तर्रात्मा उसको धिक्कारती है तो वह उसको जस्टीफाई करने लगता है कि क्या हुआ, इतना अमीर आदमी है, थोड़ा उससे ले ही लिया क्या फर्क पड़ गया।

मैं भूखा हूं, लोग मेरे ऊपर तरस नहीं खा रहे, मैं गरीब हूं मेरा शोषण किया गया है। बहुत सारे ऐसे तर्क वो अपने पक्ष में ढूंढ़ लेता है और अपनी अन्तर्रात्मा को शांत कर देता है। झूठ बोलने वाले व्यक्ति किसी को धोखा देने वाले व्यक्ति इस तरह से होते हैं जिसके बारे में उपनिषद भी कहते हैं कि ये आत्मा का हनन करने वाले लोग होते हैं। जब कोई व्यक्ति अपनी आत्मा का हनन करता है, अपने आप से झूठ बोलता है, अपने आप को पीड़ा पहुंचाता है तो ऐसे में हमारे शरीर को जो केमिकल बैलेंस है वो बिगड़ जाता है और बहुत सारे मानसिक रोग हमारे अंदर आ जाते हैं। 

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03 October 2022, 07:24 PM IST

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