ॐलोक आश्रम: ईश्वरीय शक्ति किस तरह से इस संसार को संचालित करती है? भाग-1
ईश्वरीय शक्ति किस तरह से इस संसार को संचालित करती है और जरूरत पड़ने पर अपनी शक्तियों के साथ किस तरह से हस्तक्षेप करती है। भगवान कृष्ण इस विषय में गीता में कहते हैं
ईश्वरीय शक्ति किस तरह से इस संसार को संचालित करती है और जरूरत पड़ने पर अपनी शक्तियों के साथ किस तरह से हस्तक्षेप करती है। भगवान कृष्ण इस विषय में गीता में कहते हैं कि मैं अजन्मा हूं, अविनाशी हूं। समस्त संसार का मैं अधिपति हूं, स्वामी हूं फिर भी अपनी प्रकृति के अनुसार अपनी प्रकृति से परे होकर अपनी शक्ति के द्वारा अपनी माया के द्वारा मैं प्रकट होता हूं। इस संसार में आता हूं। जो कुछ भी हमें दिखाई देता है यह ईश्वर का ही परिणाम है यह ईश्वर ही है। उपनिषद कहते हैं कि जो कुछ भी ब्रह्मांड में है वो सबकुछ ब्रह्म है, सबकुछ ईश्वर है।
हमारी बुद्धि की गति ब्रह्म तक नहीं है। जो कुछ भी हमारी बुद्धि देखती है जो कुछ भी हम संसार में देखते हैं यह हमारी बुद्धि की कल्पना है। जो भी हमारा ज्ञान है वो हमारी बुद्धि के द्वारा जनित है। हम संसार को जिस तरह से देखते हैं वो एक तरह है। एक कुत्ता जिस तरह से संसार को देखता है वो दूसरी तरह है। एक गाय जिस तरह संसार को देखती है वो तीसरी तरह है। एक मच्छर संसार को देखता है वो एक अलग तरह है। एक अमीबा संसार को देखता है वो अलग तरह का है। एक सांप संसार को देखता है वो अलग तरह का है।
हर जीव का संसार अलग तरह का है। एक वृक्ष का संसार अलग है एक पक्षी का संसार अलग है। सबका संसार को देखने का अलग ढंग है। वस्तुत: सबका एक नियत ढंग है नियत रूप से हर व्यक्ति हर प्राणी इस संसार को देखता है। वह उस संसार को इतना ही देख पाता है जितनी उसमें शक्ति प्रभु ने दी है। इस विकास की परंपरा में मानव को पांच ज्ञानेन्द्रियां मिली है। उस पांच ज्ञानेन्द्रियों के हिसाब से ही मनुष्य इस संसार को देख पाता है। आप कल्पना कीजिए कि विकास की इस परंपरा में मनुष्य के पास आंखें नहीं होती तो हमारे लिए रंगों के लिए कोई अस्तित्व नहीं होता। हमारे लिए शायद प्रकाश का भी कोई अस्तित्व नहीं होता। प्रकाश होता, रंग होता लेकिन उसका अस्तित्व हमारे लिए नहीं होता।
हमारे लिए समय शायद ध्वनि की गति से ही परिवर्तित होता। चूंकि आंखें हैं हम आंखों के हिसाब से देख सकते हैं, प्रकाश को देख सकते हैं प्रकाश की गति को नाप सकते हैं तो आज हमारे लिए प्रकाश आज हमारे लिए समय तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड की दर से परिवर्तित होता। उस समय शायद 332 मीटर प्रति सेकेंड की दर से समय हमारे पास से गुजरता। इसी तरह कई जीव ऐसे है जिनके पास दो इन्द्रियां हैं तीन या चार इन्द्रियां हैं वो संसार को उसी तरह से देखती हैं। कुछ लोगों के अंदर हम सुनते हैं कि सिक्सथ सेंस हैं जिससे वो घटनाओं का साक्षात्कार कर लेते हैं। भविष्य का भी साक्षात्कार कर लेते हैं। उसी तरह मानिए कि दुनिया में किसी के पास भी आंख नहीं होती और एक व्यक्ति होता जिसके पास आंख होती या देखने की क्षमता होती और वह दस मिनट पहले ही बता देता कि एक अमुक व्यक्ति आने वाला है क्योंकि वह दूर से ही उस व्यक्ति को देख लेता है। बाकी लोग उसे छूकर या उसकी गंध महसूस करके जान पाते कि यह व्यक्ति आ गया तो उसे कहते कि इसके पास फिफ्थ सेंस है। इसी तरह से आज लोग कहते हैं कि इसके पास सिक्सथ सेंस है तो कुल मिलाकर हम इस संसार को बहुत लिमिटेड स्वरूप पर जानते हैं और जो प्रभु हैं वो अनलिमिटेड हैं असीमित हैं तो ये संसार जो हमें दिखाई देता है वह बहुत ही सीमित संसार है। प्रभु ने जो असीमित संसार रचा हुआ है ये प्रभु की शक्ति है जो हमें इस सीमित संसार के रूप में दिखाई देती है। भगवान ने जो नियम बना दिये हैं उन नियमों के हिसाब से यह संसार चलता रहता है। लेकिन कभी-कभी प्रभु हस्तक्षेप करते हैं।
भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि जब-जब इस संसार में धर्म की हानि होती है धर्म का नाश होता है और अधर्म का उत्थान होता है तब तब मैं इस संसार में आता हूं। साधुओं के परित्राण के लिए, साधुओं के कल्याण के लिए, दुष्टों के विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में आता हूं। प्रभु ये कहना चाह रहे हैं अर्जुन को कि ऐसा भी समय आता है जब सत्य पराजित होने लगता है पराजित हो जाता है। जब धर्म नाश को प्राप्त हो जाता है। अधर्म का उत्थान होता है, अधर्म ही धर्म बनकर विचरण करने लगता है। ऐसा समय आ जाता है जब सत्य बोलने वाले का दमन कर दिया जाता है। असत्य बोलने वाला विजयी होता दिखाई देता है। ऐसा समय आता है जब सन्मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति के रास्ते में कांटे ही कांटे होते हैं उसका वध भी हो जाता है और झूठ, अहंकार के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति विजय को प्राप्त होता है।
ऐसा समय आता है जब लोग धर्म के रास्ते पर चलने से डरने लगते हैं। जो अधर्म के रास्ते पर चलता है उसी की पूजा करते हैं और उसी को स्वामी मान लेते हैं और वही अपने आप को धर्मात्मा कहता है। ऐसा समय जब आता है तब प्रकृति में अति प्राकृतिक शक्तियां हस्तक्षेप करती हैं। पुराने कालों में देखा गया है ऋषियों-मुनियों ने देखा है, हमारा इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब ऐसा हुआ तब-तब कोई ऐसी दैवीय शक्ति प्रकट होती है जिसकी आत्मिक शक्ति पृथ्वी में उपलब्ध बाकी लोगों की आत्मिक शक्ति से कहीं ज्यादा विकसित कहीं ज्यादा सुदृढ़ होती है और वह उस आत्मिक शक्ति के बल पर वह अन्याय का विनाश करता है और न्याय की स्थापना करता है। यह संसार का नियम है।