ॐलोक आश्रम: ईश्वरीय शक्ति किस तरह से इस संसार को संचालित करती है? भाग-2

ॐलोक आश्रम: ईश्वरीय शक्ति किस तरह से इस संसार को संचालित करती है? भाग-2

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य के तीन शरीर होते हैं एक स्थूल शरीर जो हमें दिखाई दे रहा है, एक सूक्ष्म शरीर जब मरने के बाद आत्मा निकलती है, जीव निकलता है वह एक शरीर होता है वह सूक्ष्म शरीर है और कारण शरीर। इस समस्त लोकों का समस्त मनुष्यों का कारण शरीर एक ही है। वो है परमपिता परमात्मा। वह सूक्षम चैतन्य है जो उस सूक्ष्म शरीर का भी आधार है वह कारण शरीर है। जो सूक्षम शरीर है जिसको हम सॉफ्टवेयर कहते हैं। इस स्थूल शरीर के अंदर जो सॉफ्टवेयर है वो हमारा सूक्ष्म शरीर है। हर व्यक्ति का अपना सॉफ्टवेयर अलग अलग है। कुछ व्यक्तियों के सॉफ्टवेयर बड़े डाउनग्रेड होते हैं जबकि कुछ व्यक्ति के सॉप्टवेयर अपग्रेड होते हैं। इसी कारण कुछ मनुष्य ऐसे हैं जो हमें पशुओं की तरह आचरण करते हुए दिखेंगे।

उनका हर कार्य पशुओं की तरह होगा। अच्छा खाना मिल जाए खुश हो जाएंगे अच्छा सोने को मिल जाए, अच्छी सुविधाएं मिल जाए इतनी ही उनकी गति होगी इतनी ही उनकी सोच होगी। कुछ व्यक्ति इससे उठे हुए होंगे जो साहित्य में संगीत में कला में निपुण होंगे विचारक होंगे विचारों में लगे हुए होंगे, खेलों में लगे हुए होंगे। इसे भी ऊपर आध्यात्म में लगे हुए जो आध्यात्मिक व्यक्ति होते हैं वो इससे भी ऊपर होते हैं। तो जब इस तरह संसार में व्याप्त दुख हो जाता है, अन्याय की स्थापना हो जाती है और अन्याय न्याय को परास्त करने लगता है, विश्व में त्राही-त्राही मच जाती है तब ऐसे ही सूक्षम शरीर जो कि दिव्य आत्माओं के रूप में होते हैं, जो राम और कृष्ण के रूप में होते हैं वो सूक्ष्म शरीर वो सूक्ष्म आत्माएं हमारे यहां उत्पन्न होती हैं जिन्हें हम भगवान कहते हैं।

वो इस संसार में दुखों का नाश करके इस संसार में व्याप्त अन्याय का नाश करके न्याय की स्थापना करती है। भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि मैं ही वह हूं जो कभी राम के रूप में जन्म लिया अब मैं कृष्ण के रूप में जन्म ले रहा हूं। जन्म लेने का उद्देश्य ही यह है कि वह गाइड करता है। भगवान कृष्ण ने न तो महाभारत युद्ध लड़ा और न ही उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से लोगों के गले काट दिए। भगवान कृष्ण ने इस संसार को उपदेश दिया कि यह संसार आपका है यह कर्तव्य आपका है। अन्याय से लड़ने का काम आपका है। मैं पीछे बैठकर आपको शक्ति दे रहा हूं, मैं पीछे बैठकर आपको सामर्थ्य दे रहा हूं।

भगवान कृष्ण ने गीता इसीलिए अर्जुन को बताई कि हर व्यक्ति अन्याय का मुकाबला कर सके। हमेशा समाज ऐसा ही रहता है अन्याय कई बार न्याय को परास्त कर देता है। न्याय के लिए लड़ता-लड़ता कई बार व्यक्ति मारा जाता है। अगर व्यक्ति भगवान कृष्ण के उपदेशों पर चले, अन्याय का प्रतिकार करे, न्याय के साथ रहे, कर्म योग और ज्ञान योग को समझ ले, भक्ति योग पर चल दे तो कभी भी अन्याय न्याय को हरा नहीं सकता। भगवान कृष्ण अर्जुन से यही कह रहे हैं कि जब अति हो जाएगी, जब सृष्टि इस अवस्था में पहुंच जाएगी, प्राणी खुद अन्याय को खत्म करने में समर्थ नहीं हो सकेंगे, धर्म का लोप हो जाएगा तब हमें आना पड़ेगा। तब मैं आकर आप लोगों को प्रवृत करूंगा, आपको ही कर्म करने के लिए कहूंगा।

कर्म तब भी आपको ही करना है। इस भगवदगीता के द्वारा भगवान कृष्ण हमेशा हर स्वरूप में विद्यमान हैं। व्यक्ति अगर धर्म के रास्ते पर चलने लगे अपने कर्तव्य के रास्ते पर चलने लगे तो अन्याय को इस पृथ्वी से, इस सृष्टि से खत्म किया जा सकता है उसको हराया जा सकता है। अगर हम केवल अपने ही स्वार्थ में बैठें रहें और युद्ध में मृत्यु के डर से भागते रहे तो निश्चित ही अन्याय की विजय होगी, अधर्म की विजय होगी। न्याय और धर्म हार जाएंगे। जैसा अर्जुन युद्ध भूमि से भागने की कोशिश कर रहा था।

भगवान कृष्ण ने गीता में यही कहा कि भागना धर्म नहीं है भागना न्याय नहीं है। आपको लड़ना होगा आपको अपना कर्तव्य करना होगा। आपको अधर्म, अन्याय, अज्ञान के विरुद्ध खड़े होना होगा और यही काम अंततोगत्वा अर्जुन ने किया और तभी जाकर महाभारत युद्ध के पश्चात धर्म की स्थापना हुई। इसीलिए भगवान कहते हैं कि धर्म की स्थापना करने के लिए मैं हर युग में आता हूं। आज हम भगवदगीता के बताए हुए रास्ते पर चल दें तो अधर्म और अन्याय की जगह धर्म की स्थापना हो सकती है।

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29 September 2022, 05:10 PM IST

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