ॐलोक आश्रम: 75 साल में आध्यात्म ने कितनी प्रगति की है? भाग 2

जानवरों की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे। हमारे पास नगरीय सभ्यता थी। हमारे पास भाषा थी। हमारे पास शास्त्र थे। हमारे पास ज्ञान थे। हमने चिकित्सा में सबसे पहले काम करना चालू किया। हमने ग्रह-नक्षत्रों में सबसे पहले काम करना चालू किया।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

जानवरों की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे। हमारे पास नगरीय सभ्यता थी। हमारे पास भाषा थी। हमारे पास शास्त्र थे। हमारे पास ज्ञान थे। हमने चिकित्सा में सबसे पहले काम करना चालू किया। हमने ग्रह-नक्षत्रों में सबसे पहले काम करना चालू किया। हमने गणित में काम करना चालू किया। हमने विश्व को सभ्यता दी जो मानव समाज सभ्य हुआ है। दुर्भाग्य की बात है कि आज वो चीजें हमें ही पता नहीं है। हमनें दुनिया को क्या दिया। हमारे बच्चों को पता नहीं है। अगर हमें भारत को सबसे आगे बढ़ाना है। विश्व गुरु बनाना है तो आध्यात्म को इसके साथ लाना है।

आध्यात्म को शिक्षा से जोड़ना है और शिक्षा ही वह है जो मनुष्य को देव बना सकती है। व्यक्ति की सुषुप्त शक्तियों का जागरण कर सकती है। यह सभ्यता जो सनातन सभ्यता है उस सभ्यता के मूल्य को हमें पहचानना पड़ेगा। जो राजनीतिक शक्तियां हैं उन राजनीतिक शक्तियों को, राजनैतिक नेतृत्व को इस बात को समझना पड़ेगा और एक साहसपूर्ण निर्णय लेना पड़ेगा कि यह समाज, यह देश सनातन मूल्यों का है और उसे सनातन मूल्यों को बेधड़क घोषित किया जाए। जब तक हम अपने मूल्यों को घोषित नहीं करेंगे, हम इस देश को सनातन राष्ट्र घोषित नहीं करेंगे तबतक कोई दूसरा हमारे मूल्यों को मानने नहीं आएगा। कोई हमें सम्मान नहीं देगा। शेर का कोई राज्याभिषेक नहीं होता। जंगल में उसकी ताजपोशी नहीं होती है।

जंगल के सारे जानवर मिलकर उसे राजा नहीं बनाते हैं। शेर स्वयं राजा बन जाता है। शेर अपने कर्मों से राजा बन जाता है। इसी तरह से दुनिया में कोई किसी को मुकुट नहीं पहनाता। कोई किसी को ताज नहीं पहनाता। आपको संघर्ष करना पड़ता है आपको तप करना पड़ता है। आपको अपने कार्यों से ये साबित करना पड़ता है कि आप विश्व के सिरमौर हैं। इस देश में ये क्षमता है, इस मिट्टी में यह क्षमता है। यहां के लोगों में ये क्षमता है। आवश्यकता है तो सरकार को सपोर्ट देने की और इस देश को सनातन राष्ट्र घोषित करने की और यहां के मूल्यों को बढ़ावा देने की। हम भारतीय मूल्यों पर जिएं। हम यहां के मूल्यों पर जिएं। न कि हम किसी दूसरे के मूल्यों को बड़ा मानकर और उसके पीछे भागें, उसके पीछे दौड़ें।

हमारी मूल्यों की पहचान है लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि हमारे मूल्यों की पहचान पाश्चात्य  में ज्यादा है और हमारे देश में कम ही लोग ऐसे हैं जो हमारी मूल्यों को पहचान पाए हैं। अब नई चेतना बढ़ रही है नई जागरुकता बढ़ रही है। लोग समझ रहे हैं कि हमारे मूल्य कितने महत्वपूर्ण हैं। अब यही देखिए कि वेदों में अगर कहीं सबसे ज्यादा रिसर्च है तो वो यूरोप में है। आयुर्वेद के ऊपर रिसर्च हो रही है तो वो यूरोप में हो रही है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति के ऊपर जो रिसर्चेज हो रही हैं, हमारे पुरातत्व के उपर रिसर्च हो रहे हैं वो बाहर हो रहे हैं। ये रिसर्चेज भारत में होने चाहिए। आयुर्वेद बहुत ही प्राचीन पद्धति है और बहुत ही सटीक पद्धति है लेकिन आज आयुर्वेद का तात्पर्य कुछ चूरन और कुल गोलियां रह गया है। सरकार इसपर काम करे, धर्म इस पर काम करे और धर्म की संस्था बने। बहुत ज्यादा इसपर काम किया जा सकता है। इसी तरह से उपनिषदों पर काम किया जा सकता है। जबतक अपने मूल्यों को हम नहीं पहचानेंगे और उन मूल्यों पर हम नहीं चलेंगे तबतक हम विश्व के गुरु नहीं बन सकते। विश्व के लीडर नहीं बन सकते।

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24 November 2022, 01:46 PM IST

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