ॐलोक आश्रम: हमारा जीवन कैसा होगा? भाग-1

हमारा जीवन कैसा होगा ये तय करते हैं हमारे विचार। जैसे हमारे विचार होते हैं हमारे मनस उसी तरह के परमाणुओं को उसी तरह की फ्रीक्वेंसीज को आकर्षित करने लगता है। उसी तरह के लोग हमसे जुड़ने लगते हैं और धीरे-धीरे हमारा क्लाउड ऐसे ही लोगों का बन जाता है।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

हमारा जीवन कैसा होगा ये तय करते हैं हमारे विचार। जैसे हमारे विचार होते हैं हमारे मनस उसी तरह के परमाणुओं को उसी तरह की फ्रीक्वेंसीज को आकर्षित करने लगता है। उसी तरह के लोग हमसे जुड़ने लगते हैं और धीरे-धीरे हमारा क्लाउड ऐसे ही लोगों का बन जाता है। जब क्लाउड ज्यादा एक तरह के समान विचार वालों का बन जाता है तो उसी तरह के समाज का निर्माण होने लगता है। एक समान विचारधार वाले लोगों की दुनिया बन जाती है ऐसा ही समान परिवेश बन जाता है। दुनिया में दो तरह के लोग दिखाई देते हैं। दो तरह के पंथ दिखाई देते हैं। जो अपने आप को धर्म कहते हैं। एक पंथ वो है जो यह कहता है कि केवल मैं ही सही हूं और जो मुझे मानता है वही जीवन में सुख प्राप्त करने का अधिकारी है। जो मुझे नहीं मानता उसे जीवन में सुख प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। यहां तक कि उसे जीवन जीने का भी अधिकार नहीं है। दूसरा पंथ यह मानता है कि सभी व्यक्तियों को जीवन में सुख प्राप्ति के अधिकार हैं। ईश्वर एक है और उस तक पहुंचने के अनंत रास्ते हैं।

ईश्वर तक पहुंचने के लिए लोग अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल करते हैं। कई विधियों का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से कोई भी रास्ता सही हो सकता है। कोई भी विधि सही हो सकती है। किसी रास्ते की अच्छाई या बुराई, सच्चाई या उसकी असत्यता इस बात पर निर्भर करेगी कि उस रास्ते पर चलने वाले का दिल कितना सच्चा है। वह दूसरों के प्रति कितना सहिष्णु है कितना दयावान है। कितनी सज्जनता के गुणों को धारण किए हुए है। हर व्यक्ति ईश्वर का ही पुत्र है और इसके कारण से हर व्यक्ति समान है। हर व्यक्ति उसी परमपितापरमेश्वर के अधीन है। इस तरह के विचार को रखने वाले भी बहुत सारे पंथ हैं। जब हम विश्व पर नजर डालते हैं, दुनिया पर नजर डालते हैं तो बहुत सारे देश हमें ऐसे दिखाई देते हैं जो काफी संपन्न हैं जहां के लोग सुखी हैं।

जहां हर ओर संपन्नता और खुशियां दिखाई देती हैं। कुछ ऐसे देश भी दिखाई देते हैं, ऐसे समाज दिखाई देते हैं जो आर्थिक रूप से विपण्न हैं जहां के लोग दुखी हैं। जहां गरीबी है। भुखमरी है। रोजगार और व्यापार के बजाय जहां हिंसा का बोलबाला है। अगर हम उनके पीछे कारणों में जाएं तो हम देखेंगे कि जो समाज, जो पंथ हिंसा अपने विचार के रूप में रखे हुए है, वह समाज दुखी है। उस पंथ के लोग दुखी हैं। वह जहां रहते हैं वह नकारात्मक विचारधारा लोगों को दुखी किए हुए है। जो सहृदय हैं, सहिष्णु हैं, दूसरों के दुख में साथ खड़े होते हैं वो सुखी दिखाई देते हैं। जिन्होंने दूसरों के दुख को बांटा है, दूसरों को सुख देने की चेष्टा की है वो आपको समाज में सुखी दिखाई देंगे।

बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो जंगलों में दुखी रहने वाले लोगों के लिए अभावग्रस्त लोगों के लिए खाना लेकर जाते हैं, दवाइयां लेकर जाते हैं। उनकी शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए जाते हैं। उनके रहने का इंतजाम करते हैं. अपनी सुख सुविधाओं का ध्यान न रखते हुए उन दुखी और पीड़ित लोगों के लिए काम करते हैं। उनकी हर तरह से मदद करते हैं। ऐसे समाज के लोग सुखी होते हैं और ऐसा समाज भी सुखी होता है। बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो पूरी दुनिया को अपने ही तरीके से ढालना चाहते हैं। अपने मन मुताबिक दुनिया को चलाना चाहते हैं। वो चाहते हैं जैसी उनकी सोच है उसके अनुसार दुनिया चले। जो उनके तरीके पर नहीं ढल पाता उसपर वे अत्याचार और अनाचार करते रहते हैं। वे तरह-तरह की तरकीबें निकालते हैं ताकि किस तरह पूरी दुनिया उनके रंग में ढल जाए। उन्हीं के इशारों पर चले। उन्हीं का कहा माने।

calender
06 December 2022, 04:45 PM IST

जरुरी ख़बरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो