ॐलोक आश्रम: हमारा जीवन कैसा होगा? भाग-2

ऐसे व्यक्ति दूसरे पर अत्याचार करने के कारण नकारात्मक सोच रखने के कारण दुखी होते हैं। जिस पंथ का जिस समाज के आदर्श की पराकाष्ठा ही यही है कि व्यक्ति अपने उद्देश्य के लिए अपने शरीर पर बम बांधकर उड़ जाए, फिदायीन हो जाए और जिसका उद्देश्य भी ये हो कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मौत हो, ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

ऐसे व्यक्ति दूसरे पर अत्याचार करने के कारण नकारात्मक सोच रखने के कारण दुखी होते हैं। जिस पंथ का जिस समाज के आदर्श की पराकाष्ठा ही यही है कि व्यक्ति अपने उद्देश्य के लिए अपने शरीर पर बम बांधकर उड़ जाए, फिदायीन हो जाए और जिसका उद्देश्य भी ये हो कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मौत हो, ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो। ऐसे समाज का आदर्श, ऐसे पंथ का आदर्श कैसे समाज को सुखी रख सकता है। कैसे समाज के लोगों को सुखी रख सकता है। जो व्यक्ति नकारात्मकता को दिल में पाले हुए है। दूसरों का बुरा करने पर तुला हुआ है।

दूसरों का नुकसान करने पर तुला हुआ है. मरने-मारने पर उतारू है। दूसरों के प्रति विद्वेष को अपने मन में पाले हुए है। सबसे पहले वह विद्वेष उसके अपने उपर असर दिखाएगा क्योंकि दूसरे के प्रति जो विद्वेष है दूसरों के पास तो है नहीं उसका आप बुरा भी करोगे तो थोड़ा बुरा करोगे, ज्यादा बुरा तो आप अपने खुद का करोगे। उसके बाद फिर आप अपने आसपास के लोगों का बुरा करने लगोगे। यही वस्तुस्थिति होती है। व्यक्ति यह सोचता है कि वह दूसरों के प्रति द्वेष पालकर, दूसरों के प्रति विरोध पालकर दूसरे का पतन कर रहा है, दूसरे का बुरा कर रहा है। वह दूसरे से ज्यादा अपने आप का बुरा कर लेता है। जब किसी समाज में ऐसे व्यक्ति हों और ऐसे व्यक्तियों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाए जो दूसरे का बुरा करना चाहें तो ऐसे सारे व्यक्तियों का बुरा होने लगता है इसके फलस्वरूप समाज का ही बुरा होने लगता है। अगर कोई देश ऐसे व्यक्तियों से बना हो, ऐसे समाज से बना हो तो उस देश का पतन होने लगता है। वह देश पतनोन्मुख हो जाता है।

आप ऐसे विचारों को किसी भी पंथ का नाम लें, किसी भी सम्प्रदाय का नाम ले लें, किसी धर्म का नाम ले लें लेकिन ऐसे विचार आपको आपके समाज को, आपके देश को, राष्ट्र को नष्ट करने वाले विचार हैं। अगर आपको, अपने आपको, समाज को, देश को धर्म को रास्ते पर ले जाना है, धर्म को मानना है, आगे जाना है तो आप लोक कल्याण की भावना अपनाइए। आप सोचिए कि सबका कल्याण हो। जो मेरी तरह है या जो मेरी तरह नहीं है सभी सुखी रहें। सभी लोग आगे बढ़ें, सभी लोग प्रगति करें। सभी लोग एक-दूसरे के प्रति सुख-दुख में खड़े हों।

चाहे उनके विचार किसी तरह के हों, चाहे वो किसी तरह का पहनावा रखते हों। चाहे वो किसी तरह के नाम रखते हों। नाम में, पहनावे में, विचार में क्या रखा है। सभी हैं तो इंसान ही। अगर आप इस तरह के विचार रखेंगे। इस तरह का व्यवहार आपका होगा तो न केवल आप खुशी रहेंगे बल्कि आप अपने परिवेश को खुश रखेंगे। आप अपने समाज को खुश रखेंगे आप पूरे देश को खुश रखेंगे। मानवता को केवल यही विचार खुश रखते हैं। दूसरों को दुखी करने का विचार कभी भी मानवता को खुश नहीं रख सकता। यही जीवन दृष्टि है यही भगवान कृष्ण की गीता का उपदेश है, रहस्य है और यही भारतीय ऋषियों का उद्घोष है, यही उनका सूक्ष्म चिंतन है।

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06 December 2022, 06:10 PM IST

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