Joshimath: स्वर्ग के प्रवेश द्वार पर संकट! जानिए शंकराचार्य की तपोस्थली जोशीमठ का पूरा इतिहास

उत्तराखंड को ऊपर वाले ने जितनी खूबसूरती से नवाजा है, उतना ही दुश्वारियां भी इसकी झोली में डाली हैं। कुदरत का कहर, यहां कब बरप जाए ये कोई नहीं कह सकता है... जैसे कि इस वक्त यहां का प्राचीन और लोकप्रिय शहर जोशीमठ भूस्खलन की चपेट में आ चुका है। यहां घरों की दीवारें दरक रही हैं तो धरती का सीना फाड़ पानी की धार बहने लगी है। ऐसे में इस भारी संकट (Joshimath sinking) को देखते हुए शहर के सैकड़ों घरों को खाली कराया जा रहा है। लेकिन इस बीच सवाल ये है कि शहर से आबादी तो हटाई जा सकती है, पर यहां के पौराणिक महत्व वाले धार्मिक स्थलों का क्या क्या स्वर्ग का द्वार कहा जाने वाला जोशीमठ यूं ही ध्वस्त हो जाएगा।

calender

उत्तराखंड को ऊपर वाले ने जितनी खूबसूरती से नवाजा है, उतना ही दुश्वारियां भी इसकी झोली में डाली हैं। कुदरत का कहर, यहां कब बरप जाए ये कोई नहीं कह सकता है... जैसे कि इस वक्त यहां का प्राचीन और लोकप्रिय शहर जोशीमठ भूस्खलन की चपेट में आ चुका है। यहां घरों की दीवारें दरक रही हैं तो धरती का सीना फाड़ पानी की धार बहने लगी है। ऐसे में इस भारी संकट (Joshimath sinking) को देखते हुए शहर के सैकड़ों घरों को खाली कराया जा रहा है। लेकिन इस बीच सवाल ये है कि शहर से आबादी तो हटाई जा सकती है, पर यहां के पौराणिक महत्व वाले धार्मिक स्थलों का क्या? क्या स्वर्ग का द्वार कहा जाने वाला जोशीमठ यूं ही ध्वस्त हो जाएगा।

आदिगुरु शंकराचार्य ने यहां की थी पहले मठ की स्थापना

गौरतलब है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में बसे जोशीमठ का सनातन धर्म में अपना पौराणकि महत्व रहा है। दरअसल, आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा भारतवर्ष में स्थापित चार प्रसिद्ध पीठों में से एक जोशीमठ भी एक है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शंकराचार्य ने इस स्थान पर तपस्या कर दिव्य ज्योति प्राप्त की थी। इसलिए जोशीमठ को मूल रूप से ज्योतिर्मठ कहा जाता था, पर धीरे-धीरे ये बोलचाल की भाषा में जोशीमठ कहा जाने लगा। इस तरह से बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच जोशीमठ, बद्रीधाम का प्रवेश द्वार होने के साथ ही स्वर्ग का भी प्रवेश द्वार माना जाता है।

1200 साल पुराने नृसिंह देव मंदिर का है अपना पौराणिक महत्व

मालूम हो है कि जब सर्दी में 6 महीने तक बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होते हैं तो भगवान बद्री की एक मूर्ति को जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में स्थापित कर वहां पूजा की जाती है। बता दें कि 1200 साल पुराने नृसिंह देव के इस मंदिर का इतिहास भी आदिगुरु शंकराचार्य से जुड़ा है, दरअसल मान्यता है कि नृसिंह देव की मूर्ति को इस मंदिर में शंकराचार्य ने ही स्थापित किया था। माना जाता है कि ये विश्व का एकमात्र ऐसा देव स्थल है जहां भगवान नृसिंह शांत रूप में विराजमान है।

कत्यूरी राजाओं ने 7वीं से लेकर 11वीं शताब्दी तक किया है शासन

वहीं बात करें जोशीमठ के इतिहास तो पहाड़ों में बसे इस क्षेत्र पर कत्यूरी राजाओं का 7वीं से लेकर 11वीं शताब्दी तक शासन रहा है। बताया इस शासन काल के दौरान यहां के ज्यादातर लोग बुद्ध धर्म को मानने थे। पर इसके कुछ साल बाद यहां के लोगों ने खुद को ब्राह्मण घोषित करते हुए हिंदू में वापसी कर ली। बौद्ध धर्म की सभी दीक्षाओं को त्याग कर इन्होनें हिंदू कर्म-कांड को अपना लिया।

इस तरह की ऐतिहासिकता वाला जोशीमठ आज भूस्खलन के चलते धरती में समाहित होता दिख रहा है। आदिगुरु शंकराचार्य की ये तपोस्थली लोगों के सामने धवस्त होती दिख रही है। मीडिया में आई तस्वीरों में ढाई हजार वर्ष पुराने इस मंदिर के पास के धरती भी दरकती नजर आई है। जबकि इस मंदिर के पौराणिक महत्व के चलते यहां देश के सभी कोने से लोग आते रहे हैं। ऐसे में कुदरत के कहर के चलते जोशीमठ में सिर्फ जनसमाज ही नहीं बल्कि इस शहर की हजारों साल पुरानी ऐतिहासिकता भी खतरे में नजर आ रही है। First Updated : Tuesday, 10 January 2023