जानिए शनिदेव का जन्म कब, कैसे और कहां हुआ था, क्यों है शनिदेव का रंग काला

देवी संज्ञा ने छाया से कहा कि ये राज मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा किसी तीसरे व्यक्ति को इस बारें में पता नहीं चलना चाहिए।देवी छाया का नाम संवर्णा भी था।साथ ही सूर्यदेव और तीनों संतानों की जिम्मेदारी तुम्हारी ही रहेगी।

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प्रत्येक शनिवार को शनिदेव की पूजा की जाती है साथ ही इस दिन कई लोग व्रत और भगवान शनिदेव की कथाएं भी पढ़ते हैं। भगवान शनिदेव को कर्मफल दाता के नाम से भी जाना जाता है। जो कि व्यक्ति के कर्म के अनुसार उन्हें फल देते हैं।इसके साथ ही शनि देव भगवान को हर शनिवार के दिन तेल चढाया जाता है।कई लोग ऐसे होते है जो शनिवार के दिन अनेक गलतियां कर बैठते हैं।

जिसके चलते हैं उन्हें शनि देव के क्रोध का सामना करना पड़ता है।यह सवाल कई लोगों के मन में होगा कि आखिर भगवान शनिदेव का जन्म कैसे, कब और कहां हुआ था। आज हम आपको बतायेंगे कि शनिदेव का जन्म किस तरह से हुआ था साथ ही क्या कहती हैं शनिदेव के बारे में कथाएं आइए जानते हैं?

देवी संज्ञा ने दी छाया को जिम्मेदारी

भगवान शनिदवे के बारे में कई अनेक प्रकार की कथाएं बताई जाती हैं।कई लोगों का मानना है कि कर्मफल दाता का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था, साथ ही शनिदेव का जन्म भाद्रपद मास की शनि अमावस्या को भी माना जाता गया है। शनिदवे के पिता सूर्यदेव को माना जाता है साथ ही माता का नाम छाया है,लेकिन सके पीछे की एक और था है। जिसमें कहा जाता है कि राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेव के साथ किया गया था।

कुछ दिन रहने के बाद देवी संज्ञा सूर्यदेव के तेज से परेशान हो गई। समस बीतता गया और देवी संज्ञा ने तीन संतानों को जन्म दिया। अधिक परेशान होने पर देवी संज्ञा ने सोचा सूर्यदेव के तेज को कम करने के लिए कठोर तपस्या करनी होगी। इस बारें में किसी भी तरह सूर्यदेव को नहीं पता चल सके। इसके लिए उन्होंने एक योजना बनाई, और अपनी शक्तियों का प्रयोग करके उन्होंने अपनी ही जैसी एक देवी को उत्पन्न किया जिसका नाम उन्होंनें छाया रखा। देवी संज्ञा ने छाया से कहा कि ये राज मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा किसी तीसरे व्यक्ति को इस बारें में पता नहीं चलना चाहिए।देवी छाया का नाम संवर्णा भी था।साथ ही सूर्यदेव और तीनों संतानों की जिम्मेदारी तुम्हारी ही रहेगी।

ऐसे हुआ शनिदेव का जन्म

जब देवी संज्ञा अपने पिता के पास पहुंची तो उन्होंनें कहा कि ये तुमने ठीक नहीं किया। तुम अभी अपने पति के पास जाओ मैं यहां तुम्हें रहने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ। यह सुनकर देवी संज्ञा अकेली वन की ओर तपस्या करने के लिए चली गई।जहां उन्होंने एक घोड़ी का रुप धारण किया था। वहीं दूसरी ओर भगवान सूर्यदेव को भी इस बार में कुछ पता नहीं चला। कि उनके साथ जो रह रही है वो देवी छाया है या संज्ञा, देवी छाया नारीधर्म का पालन करती रही और छाया होने के कारण उन्हें सूर्यदेव के तेज का कोई असर नहीं हुआ। उन्हें सूर्यदेव के तेज से कोई परेशानी नहीं थी। कुछ दिनों बाद सूर्यदेव और देवी छाया की तीन संताने हुई जिनका नाम मनु, शनिदेव और भद्रा था।

क्यों है शनिदेव का रंग काला?

जब शनिदेव देवी छाया के गर्भ मे थे, तो उन्होंने शिव जी की कठोर तपस्या की जिसका प्रभाव शनिदेव के शरीर पर पड़ा। उसके कुछ दिनों बाद जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनके शरीर का रंग काला था।जिसे देख सूर्यदेव क्रोधित हो गए और कहने लगे ये मेरा पुत्र नहीं हो सकता है।

देवी छाया पर संदेह करने लगे साथ ही उन्हें अपमानित किया। देवी छाया के तप के कारण शनिदेव में शक्ति आ गई उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा जिसे देख भगवान सूर्यदेव भी काले पड़ गए और उन्हे कोष्ठ रोग हो गया।सूर्यदेव भगवान शिव जी की शरण में पहुंचे तो उन्हें अपनी गलती का अहसास होने लगा। जिसके चलते उन्होंनें माफी मागी तब उनका रुप वापस आया। First Updated : Saturday, 18 March 2023