सभासदों ने कुत्ते से पूछा कि ये तो उसका दंड नहीं उसका पुरस्कार हो गया। कुत्ते ने कहा कि ये दंड ही है क्योंकि पिछले जन्म में मैं भी मठाधीश था मैं भगवान के नाम पर पैसे लेता था और उसको अपने ऐशो-आराम में उड़ा देता था। मैं भगवान को अपने लिए इस्तेमाल करता था जिसके कारण मैं कुत्ता बन गया और ये ब्राह्मण जिसे मैंने मठाधीश बनाने को कहा ये भी ऐसा ही है क्योंकि इसको अपनी वासनाओं पर नियंत्रण नहीं है अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं है। यह जिस मंदिर का मठाधीश होगा उसका सारा पैसा सारा धन अपने लिए इस्तेमाल करने लगेगा तो अगले जन्म में ये भी कुत्ता बनेगा। तब ये मेरे दुख को मेरे दर्द को समझेगा। ये कहानी बहुत सारे स्वरूप पर प्रकाश डालती है।
पहली बात ये डालती है कि जीवात्मा में सारे तत्व एक हैं। जो पंडित है जो विद्धान है वो समदर्शी होता है। वो विद्या विनय संपन्न ब्राह्मण में भेद नहीं करता, गाय, हाथी, कुत्ते और चांडाल में कोई भेद नहीं करता। वो उसकी जाति के सम्मान नहीं देता और किसी की जाति के कारण उसका अपमान नहीं करता कि ये मानव जाति का है ये पशु जाति का है, यह ब्राह्मण है, यह शूद्र है, यह चांडाल है बिल्कुल नहीं। उसके जीव मात्र होने के कारण उसका सम्मान करता है। सारे शास्त्रों और परंपराओं में सभी जीवों को अधिकार दिए गए हैं।
हर जीव के अपने अधिकार हैं उनको संरक्षित करना चाहिए। ऐसी परंपरा है एक ऐसी सभ्यता है जहां सांप की भी पूजा होती है जहां चूहे की भी पूजा होती है जहां मोर की भी पूजा होती है जहां गरुड़ के रूप में बाज की भी पूजा होती है। सभी पशुओं का, पक्षियों का, जंगलों का, पेड़ों का, नदियों का सबका पूजन किया जाता है। यहां सबकुछ पूजनीय हैं। इंसान की जरूरत की जितनी भी चीजें हैं सबकी पूजा होती है। ये एक ऐसी सभ्यता है। अगर हम मनुष्य हैं तो मनुष्य का उत्तरदायित्व है अपने मनोभावों पर नियंत्रण करना।
भावनाओं पर नियंत्रण बहुत जरूरी है। हम क्रोधित होकर किसी के ऊपर अत्याचार करते हैं, हम मोह में आकर किसी का समर्थन करते हैं वह हमारे अंदर विकार उत्पन्न करता है और उन विकारों का परिणाम ऐसा होता है कि हमारा ये जन्म भी खराब होता है और हमारा आने वाला जन्म भी खराब होता है। जो हम इस जन्म में करते हैं उसका जुड़ाव अगले जन्म से भी होता है। जो कर्म हम इस जन्म में करते हैं जैसा भी काम हम इस जन्म मे करते हैं उसका अगले जन्म मे भी असर दिखता है। इसलिए हमारे जीवन का सार तत्व यही है कि हम अपनी वासनाओं पर अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखें ताकि इस समाज को सुंदर बना सकें इस देश को सुंदर बना सकें, सभ्यता को सुंदर बना सकें, इस धर्म को सुंदर बना सकें।