ॐ लोक आश्रम: लोग आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाते हैं? भाग-2

समस्या यह है कि आत्महत्या सदियों से चली आ रही है। मनुष्य आत्महत्या कर लेते हैं। आत्महत्या को रोकने के लिए कानून भी बनाए गए। समाज और शास्त्रों ने इसे निंदित भी किया।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

 लेकिन जिस व्यक्ति ने अपने जीवन को खत्म करने का संकल्प कर लिया, सोच लिया, जीवन के जिसमस्या यह है कि आत्महत्या सदियों से चली आ रही है। मनुष्य आत्महत्या कर लेते हैं। आत्महत्या को रोकने के लिए कानून भी बनाए गए। समाज और शास्त्रों ने इसे निंदित भी किया।सके दुख ही दुख दिखाई दे रहा है। जो अपनी मूल प्रवृति के विरुद्ध काम कर रहा है उसे इन डरों की इन निंदा की कोई परवाह नहीं होगी क्योंकि जिसे अपने से ही प्रेम नहीं है उसे दूसरे से कैसे प्रेम हो सकता है।

एक ऋषि उपनिषद में कह रहे हैं कि मेरा है इसलिए मुझे प्रिय है, मेरी पत्नी है इसलिए मुझे प्रिय है। हर विवाहित महिला किसी न किसी की पत्नी है, हर व्यक्ति किसी न किसी का पुत्र है, मेरा पुत्र है इसलिए मेरा प्रिय है। मेरा घर है इसलिए प्रिय है लेकिन जब मैं ही नहीं हूं, मुझे अपने आप से ही प्रेम नहीं है तो बाकी लोगों से क्या प्रेम होगा। जब मैं अपने आप के शरीर को ही नष्ट करने की सोच रहा हूं तो फिर कर्तव्य, अकर्तव्य इनका प्रश्न कहां उठता है। आत्महत्या निंदित है और आत्महत्या नहीं करनी चाहिए। यह तो सभी शास्त्र कहते हैं लेकिन इसको रोकने का काम किसका है। किस तरह से इसे रोका जाय यह बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है।

अगर हम इस बारे में विचार करना चाहें तो इस बारे में विचार करके निष्कर्ष तभी संभव है जब हम व्यक्ति को समझने का प्रयास करें। जब हम यह समझने का प्रयास करें कि मानवता कहां जा रही है और समाज कहां जा रहा है। अगर आप देखेंगे तो जो व्यक्ति वास्तव में दुखी है। जिसको इतने भौतिक संसाधन उपलब्ध नहीं हैं कि वो जीवन को अच्छे से जी सके वो धूप में परेशान हो रहा है उसको दो समय का भोजन नहीं मिल रहा है वो भीषण गर्मी रिक्शा चला रहा हो या पल्लेदारी का काम कर रहा हो, बड़े-बड़े बोझे सिर पर ढो रहा हो। ऐसा व्यक्ति बहुत कम या फिर न के बराबर आत्महत्या करता है। आत्महत्या करते हुए ऐसे व्यक्ति दिखेंगे जिन्हें दोनों समय अच्छे से भोजन मिल रहा हो, घर में सुख-सुविधाएं हैं।

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26 March 2023, 03:12 PM IST

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