वह कमियों को देखने वाला व्यक्ति बन जाएगा। और जो व्यक्ति नकारात्मक विचारों की ओर आकृष्ट हो जाए, जो व्यक्ति कमियों को देखने लगे वो व्यक्ति दुखों को आमंत्रित करता है। दुखों को इकट्ठा करने लगता है और जीवन भर दुखी रहता है। इसलिए अगर किसी व्यक्ति के अंदर नकारात्मक विचार आने लगें तो अन्य उपायों के साथ अगर वो भगवदगीता पढ़ना शुरू कर दिया, भगवदगीता के कुछ भी श्लोक पढ़ने शुरू कर दिए तो शत-प्रतिशत गारंटी है कि वह नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाएगा। भगवान कृष्ण का स्मरण कर लिया उनका दर्शन कर लिया उससे ही वो नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाएगा। अगर प्रार्थना कर लिया तो प्रार्थना में इतनी शक्ति है कि वो किसी भी तरह की नकारात्मकता से किसी भी तरह की असक्षमता से व्यक्ति को मुक्त कर देती है।
व्यक्ति नकारात्मकता की जाल में इनता जकड़ जाए कि उसे बाहर निकलने का रास्ता ही न मिले उससे पहले व्यक्ति को सचेत होना है। जब व्यक्ति अवसाद में जाता है तो स्थिति यह होती है कि उस व्यक्ति के पास कुछ भी करने का सामर्थ्य नहीं रहता। तो सबसे पहले वह व्यक्ति पहचाने कि अब मैं ऐसे अवसाद में घुस रहा हूं उससे पहले मुझे भगवान की शरण में जाना है। भगवान की शरण एक ऐसी शरण है जो सारी समस्याओं का समाधान है। वह समाधान आपको मिल जाएगा। ईश्वर में आस्था एक ऐसी शक्ति है जो आपको इतनी ताकत दे देती है जो वैज्ञानिक कल्पना से भी परे है।
मोक्ष उच्चतम बिंदु है और आत्महत्या निम्नतम बिंदु है। इसके बीच बहुत सारे द्वार हैं। दुनिया में चौरासी लाख योनियों के गुजरने के बाद हमें मनुष्य योनि मिलती है। आज हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बात करें तो जिसे हम अचेतन कहते हैं हमारे उपनिषद उसे सुप्त चेतन कहते हैं और जिसे हम ईश्वर कहते हैं उसे उपनिषद परम चेतन कहते हैं। तो सुप्त चेतन से परम चेतन की यात्रा ही जीवन से मोक्ष की यात्रा है। जीवन जब आ गया और उस जीवन को आपको ऊपर लेकर जाना है। एक कोशीय प्राणी से बहुकोशीय प्राणी फिर उसके बाद वनस्पति जगत फिर जीव जगत और इस जीव जगत से होते हुए आप मनुष्य तक पहुंचते हो और मनुष्य तक पहुंचकर फिर आप ऐसा काम करते हो कि फिर आप जड़ जगत तक पहुंच जाते हो। तो जो चौरासी लाख योनियों तक यात्रा कर आप मनुष्य तक पहुंचे थे उसको आपने अपने कर्मों से इस तरह बिगाड़ लिया कि आपको फिर सदियों तक इंतजार करना पड़ता है फिर मनुष्य योनि तक आने के लिए।
मनुष्य योनि से मोक्ष तक जाने का रास्ता भी बहुत लंबा है। हजारों जन्म आपको मनुष्य योनि में गुजारने पड़ते हैं तब आप प्रभु की शरण में पहुंचते हो प्रभु के पास पहुंचते हो। निरंतर विकास की प्रक्रिया है, सतत विकास की प्रक्रिया चली आ रही है और आप आत्महत्या करके इस विकास की प्रक्रिया को उल्टा कर दिया। उल्टा ही नहीं बहुत ही गर्हित कार्य कर दिया। क्योंकि किसी दूसरे व्यक्ति का आपने बुरा किया तो दूसरे व्यक्ति के बुरा करने से आपके अंदर नकारात्मक संस्कार उत्पन्न हुए नकारात्मकता उत्पन्न हुई लेकिन आपने आत्महत्या ही कर ली तो ये नकारात्मकता की पराकाष्ठा है। इतनी बड़ी नकारात्मकता क्या आ गई कि आपने चेतन को अचेतन के स्तर तक पहुंचा दिया क्योंकि कोई भी चेतन अपनी चेतना का विनाश नही करता वह चेतना को हर हाल में बचाने की कोशिश करता है। आपने चेतना का ही विनाश कर दिया तो आप अपने आप को अचेतन की अवस्था तक पहुंचा दिया। ये तो किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए।
हमने विकास को गलत ढंग से परिभाषित कर लिया है। हमने आर्थिक प्रगति को विकास कह दिया। इस बात को हमारे ऋषियों ने बहुत पहले देख लिया था कि केवल आर्थिक प्रगति या वैज्ञानिक प्रगति, तकनीकी प्रगति ही विकास नहीं है। मानवीय मूल्यों का बना रहना विकास का सबसे बड़ा लक्षण है। इसलिए सर्वोत्तम युग सतयुग माना गया। First Updated : Friday, 31 March 2023