ॐलोक आश्रम:आज के संदर्भ में वैदिक शिक्षा के क्या मायने हैं? भाग-4

ॐलोक आश्रम:आज के संदर्भ में वैदिक शिक्षा के क्या मायने हैं? भाग-4

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

हमें नौकरी तो चाहिए ही चाहिए लेकिन जो समाज के व्यवस्थाकार है उनको देखना है कि इस युवा पीढ़ी को किस तरह से बनाना है। उनका किस तरह से निर्माण करना है कि हम नए ज्ञान के साथ प्राचीन ज्ञान को इस तरह से समायोजित करें कि दुनिया में सबसे अच्छी शिक्षा हमारे पास हो। हमारे पास मैन पावर है हमारे पास ब्रेन है हमारे यहां एनर्जी है हमारे यहां यूथ सबसे ज्यादा है और हमारे पास रिसोर्सेज हैं कि हम दुनिया के बेस्ट इंस्टीट्यूट इंडिया के अंदर बना सकते हैं। हम इस तरह की शिक्षा व्यवस्था दे सकते हैं कि पूरी दुनिया के लोग हमारे यहां आएं।

नालंदा था, तक्षशिला था, विक्रमशिला विश्वविद्यालय थे। विश्वविद्यालय का कॉनसेप्ट ही दुनिया को भारत ने दिया है। शिक्षा का कॉनसेप्ट भारत ने दुनिया को दिया है और आज भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ने जा रहे हैं। इसका कारण ये है कि हमने आंख बंद कर पाश्चात्य पद्धति का अनुकरण किया है। अच्छी बातें हैं लेनी चाहिए चाहे कहीं से भी अच्छी हैं। पाश्चात्य से अच्छी हैं तो वो भी लेनी चाहिए लेकिन अपनी बात को अपने तत्वों को अपनी संस्कृति को हीन समझकर हमें उसे छोड़ना नहीं चाहिए।बड़ी विडंबना का विषय है कि भारत देश जहां सनातन धर्म का पालन करने वाले प्रमुख रूप से रहते हैं और यहां पर हिन्दुओं या सनातन धर्म की कोई शिक्षा की उस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर कोई इस्लाम धर्म को मानता है तो वह मदरसे में शिक्षा ले सकता है, अगर क्रिश्चियन है तो वह चर्च में शिक्षा ले सकता है लेकिन अगर एक हिन्दू व्यक्ति के लिए एक सनातनी के लिए कोई संस्थागत शिक्षा की व्यवस्था नहीं है। ये सरकार को देखना होगा।

सरकार सिर्फ धर्म निरपेक्ष शब्द संविधान में जोड़कर अपने कर्तव्यों से मुक्त नहीं हो सकती। धर्म की शिक्षा देना और यह धर्म कोई उस तरह का धर्म नहीं है यह वैज्ञानिक धर्म है यहां जो धर्म की शिक्षा है वह विज्ञान की शिक्षा है। भारत ने विज्ञान को अलग ढंग से लिया। भारत ने विज्ञान को इस तरह से नहीं लिया कि आप पहले विज्ञान की खोज करो फिर पैसे में सामान बेचो। नहीं, यहां पैसा कमाना न तो धर्म का उद्देश्य था न तो चिकित्सा शास्त्र का उद्देश्य था न योग का उद्देश्य था न ज्योतिष का उद्देश्य था। यहां पैसे का तो कोई सिस्टम ही नहीं था।

विद्य़ा तो यहां मुफ्त में दी जाती थी और विद्य़ा को दान कहा जाता था। विद्य़ा दान सबसे श्रेष्ठ दान है। दान ऐसा कि जिसके बदले में कुछ पाने की इच्छा न हो। अब जो व्यवस्था बन गई है उन व्यवस्थाओं में ऐसी व्यवस्था आ गई कि हर चीज कमर्शिलाइज्ड हो गईं। हमारी जो कभी विद्य़ा दान की व्यवस्था थी वह खत्म हो गई। कुछ लोग वेदों से गणित निकाल कर उसको बेच रहे हैं। कुछ योग को बेच रहे हैं कुछ आयुर्वेद को बेच रहे हैं। अब भारत के हर व्यक्ति को मूल भारतीय संस्कृति के बिंदुओं का ज्ञान हो, धार्मिक बिंदुओं का ज्ञान हो, शिक्षा, योग, ज्योतिष, आयुर्वेद इनका ज्ञान होना चाहिए और धर्म की शिक्षा के लिए सरकार व्यवस्था करे बाकी चीजे तो चल ही रही हैं। बाकी अच्छी चीजें तो हर कहीं से ले लेनी चाहिए लेकिन हमारे पास जो अच्छी चीजें हैं वो भी दूसरों को दी जानी चाहिए सबको दी जानी चाहिए।

व्यक्ति में शक्ति आती है आध्यात्म से। व्यक्ति में शक्ति आती है भावनाओं से, व्यक्ति में शक्ति आती है प्रेम से। अगर ये भावनाएं आपके पास नहीं हैं। प्रेम नहीं है आध्यात्म नहीं है तो आप थोड़ी दूर जाकर अगर एक भी ठोकर लग गई तो आप अवसाद में चले जाओगे। बड़ी-बड़ी हस्तियां अवसाद का शिकार होकर आत्महत्या तक कर रहे हैं। आप ऊंची बिल्डिंग तभी बना सकते हो जब आधार आपका मजबूत हो उसी तरह से जीवन के लिए आधार देता है आध्यात्म।

calender
19 September 2022, 04:41 PM IST

जरुरी ख़बरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो