ॐलोक आश्रम: भगवान के भजन-पूजन का क्या फल होता है? भाग-2

ॐलोक आश्रम: भगवान के भजन-पूजन का क्या फल होता है? भाग-2

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

चाहे हम उसे अल्लाह कहें चाहे उसे गॉड कहें चाहे उसे हम राम कहें कृष्ण कहें, विष्णु कहें ब्रह्मा, महेश कहें। अल्टीमेट रियलिटी एक है और जब हम उसको अलग अलग एंगल से देखने का प्रयास करते हैं तो वहीं हमें कभी ब्रह्मा के रूप में दिखाई देता है, कभी विष्णु के रूप में दिखाई देता है, महेश के रूप में दिखाई देता है, अल्लाह के रूप में दिखाई देता है, गॉड के रूप में दिखाई देता है। जिस एंगल से हम उसे देख रहे हैं उसी एंगल के गुण हमारे अंदर डेवलप होने लगते हैं हमारे अंदर विकसित होने लगते हैं। अगर हम यह मानते हैं कि ईश्वर बड़ा परोपकारी है, बड़ा दयालु है तो हमारे अंदर परोपकार और दयालुता के गुण अंदर आने लगते हैं।

अगर हम मानते हैं कि ईश्वर से डरो वह डराने वाला है, जो ईश्वर को नहीं मानता ईश्वर उसका नाश कर देता है ऐसा अगर कोई मानता है तो वह खुद दूसरों को डराने में लग जाता है और जो उनके मत को नहीं मानते वह उसका नाश करने में लग जाता है। इसलिए कौन से विचार प्रबल होंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने किस अराध्य को चुना है। आप लक्ष्मी जी की पूजा कर रहे हैं आप सरस्वती जी की पूजा कर रहे हैं। ये देखा गया है कि देवी की पूजा करने वाले सहृदय होते हैं। स्त्री रूप में मातृ शक्ति के रूप में देवी करूणा और कृपा हमारे अंदर देती हैं तो व्यक्ति कारुणिक और कृपालु बन जाता है। जो व्यक्ति ऐसे देवता की पूजा करता है जो कठोर हैं, जो दण्ड देने वाले हैं जो अपने अलावा किसी और की पूजा करने की इजाजत नहीं देते। जो कहते हैं कि मेरी पूजा के अलावा किसी और की पूजा करोगे तो तुम्हें हम नर्क में डाल देंगे तुम्हें हम यातनाएं देंगे। ऐसे देवताओं की जो पूजा करने लग जाते हैं वो कट्टर बन जाते हैं। वो किसी और पूजा पद्धति को सहन नहीं कर पाते वो लोगों के विनाश में लग जाते हैं, सभ्यताओं के विनाश में लग जाते हैं। लोगों का गला काटने में लग जाते हैं।

वस्तुत: ईश्वर न किसी का गला काटने के लिए कहता है न किसी पर अत्याचार करने के लिए कहता है। ईश्वर तो एक है उसके रूप अनेक हैं। जो गुण आप अपने अंदर चाहते हो उसी तरह के ईश्वर का आप चयन करो। भगवान कह रहे हैं कि जो मुझे जिस तरह से प्रतिपादित करते हैं, जिस तरह से मेरा वर्णन करते हैं, जिन गुणों को मुझपर आरोपित करते हैं मैं उनको वही गुण दे देता हूं। जो मुझे धनिक रूप में देखते हैं, धन के रूप में मेरी उपासना करते हैं उनको धन मिल जाता है। जो बुद्धि और विवेक के रूप में मेरी उपासना करते हैं उनको बुद्धि और विवेक मिल जाता है।

जो पालनहार के रूप में मेरी उपासना करते हैं उनको पालन की शक्ति मिल जाती है। जो शिव के रूप में मेरी उपासना करते हैं उनपर मैं बड़ा जल्दी प्रसन्न होता हूं, आशुतोष होता हूं और उनको कल्याणकारी शक्ति प्रदान करता हूं। इस तरह भगवान अपने वास्तविक स्वरूप का वर्णन कर रहे हैं कि वास्तव में ईश्वरीय शक्ति किस तरह से काम करती है, किस तरह यह प्रकृति का नियम है किस तरह मनोविज्ञान का नियम है, किस तरह मानव का मन काम करता है किस तरह मानव की चेतना कार्य करती है। किस तरह से हमें अपने अराध्य को चुनना चाहिए। हम किन गुणों को देखना चाहते हैं, हम समाज कैसा चाहते हैं उस तरह का देवत्व हमें देखना पड़ेगा। जिन गुणों को हम बढ़ाना चाहते हैं देवता में वही गुण होने चाहिए और समाज भी उसी तरह का बनेगा।

अगर हमने देवता क्रूर चुन लिया, अगर हम जिस ईश्वर की पूजा कर रहे हैं उस ईश्वर में हमने ऐसे गुण आरोपित कर दिए कि वह नाश करने वाला है वह अपने आप को न मानने वालों को आग में डाल देने वाला है, वह अपने आप को न मानने वालों को जान से मार देने वाला है तो सारा समाज मारपीट से व्याप्त हो जाएगा, सारा समाज नफरत से व्याप्त हो जाएगा, सारा समाज युद्धों से व्याप्त हो जाएगा। जो आज हम विश्व के कई देशों में धर्म के आधार पर युद्ध की स्थिति देख रहे हैं उसका कारण ही ऐसे देवताओं की उपासना है ऐसे गुणों को प्रोत्साहित करना है। जबकि ऐसे गुण प्रोत्साहित होने चाहिए जो प्रेम युक्त हो जो श्रद्धा युक्त हो, जो दया युक्त हों, जो करुणा युक्त हों। वास्तव में धर्म ही वही है जो दया, प्रेम, करुणा आदि गुणों से विभूषित है। जो विरोध को जो क्रोध को जो नफरत को बढ़ाने वाला है उसे धर्म नहीं कहा जा सकता लेकिन फिर भी ईश्वर तो ईश्वर है, ईश्वर के ऊपर लोगों ने जिन गुणों को भी आरोपित कर दिया है वही गुण उनको मिलेंगे।

जिस तरह आप एक दीवार पर आप एक गेंद जितनी तेजी से फेंकोगे उतनी ही तेजी से वो गेंद आपके पास वापस आएगी। इसी तरह ईश्वर पर जिन गुणों को आरोपित करोगे आपके अंदर आपके व्यक्तित्व में भी वही गुण आएंगे। बड़ा ही सार्वभौम मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है जिसका भगवान श्रीकृष्ण ने पालन किया था। हमें हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम किस तरह का देवता चुनें किस तरह उसकी पूजा करें, किस तरह उसका अर्चन करे, किस तरह उसका अराधन करें। किस तरह अपने आप को ईश्वर को समर्पित करें जिससे कि हमारा आध्यात्मिक विकास हो सके। इस समस्त प्रक्रिया में देवताओं को चयन बड़ा जरूरी है। आज के संसार के हिसाब से आदर्श देवता हो सकते हैं वो स्वयं में भगवान श्रीकृष्ण हैं क्योंकि एक ओर वो आपको अपने कर्तव्य का पालन करने का उपदेश दे रहे हैं बता रहे हैं कि जीवन क्या है, बता रहे हैं कि संन्यास क्या है। यह भी बता रहे हैं कि कर्म करना कितना जरूरी है, जीवन में संतुष्टि को प्राप्त करना कितना जरूरी है, जीवन जीना कितना जरूरी है। दूसरी तरफ इसी जीवन को जीते हुए भगवान आपको भगवद प्राप्ति का मार्ग बता रहे हैं, भगवद प्राप्ति का रास्ता बता रहे हैं।

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02 October 2022, 08:32 PM IST

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