ॐलोक आश्रम: ज्ञान योग, कर्म योग कहां से आया? भाग-2

ॐलोक आश्रम: ज्ञान योग, कर्म योग कहां से आया? भाग-2

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

इसी तरह योग इन प्रकृति के नियमों में पहले से ही छुपा हुआ है और जो प्रकृति का नियम है जो ऊर्जा का नियम है वह सूर्य से प्रारंभ होता है। बिना सूर्य के इस सृष्टि की कल्पना असंभव है। बिना सूर्य के आप सृष्टि की कल्पना ही नहीं कर सकते। प्रकृति में जो जीवन है उसका प्रमुख कारण सूर्य है। प्रकृति में जितनी भी ऊर्जा है उसका कारण सूर्य है। जो आप पेड़ के रूप में ऊर्जा देखते हो कि उसकी लकड़ी को जलाकर आप अपने घर को गर्म कर सकते हो, खाना पका सकते हो वह सूर्य की ऊर्जा का संघनित रूप है।

जब पौधा छोटा होता है वह पानी लेता है और सूर्य से ऊसकी रोशनी लेता है। सूर्य की रोशनी को सूर्य की ऊर्जा को वह धीरे-धीरे अपने अंदर समेट लेता है और संघनित रूप में वही ऊर्जा है। बाद में वही ऊर्जा पेट्रोलियम में कन्वर्ट हो जाती है। इसी तरह अगर आप बादलों को देखोगे, हवाओं को देखोगे उन सब में जो एनर्जी है वो सूर्य की ऊर्जा होती है। सूर्य के पास ही वो शक्ति है वो सामर्थ्य है कि वह आपको जीवन दे सकता है। इसलिए सूर्य को शास्त्रों में पहला जनक कहा गया है। जिससे इस सृष्टि की संरचना होती है, सृष्टि की उत्पत्ति होती है जिस सूर्य से।

आज इतनी वैज्ञानिक प्रगति के बाद हमें पता चलता है कि सूर्य केन्द्र में है और सूर्य प्रमुख है। सारे ग्रह उसके चक्कर लगाते हैं जबकि ब्रह्म संहिता में बहुत पहले कह दिया गया था सूर्य ही पूरे सौर परिवार का राजा है। ब्रह्म संहिता में कहा गया है जो सूर्य है वह सभी ग्रहों का राजा है। सभी मूर्तियों में सबसे ज्यादा चमकदार है और यही समस्त कालचक्र को धारण करता है। जिसकी आज्ञा से सारे ग्रह परिक्रमा करते हैं। यह ज्ञान आज हम विज्ञान के द्वारा जानते हैं। बहुत पहले यह ज्ञान हमारे शास्त्रों में निबद्ध कर दिया गया। यह ज्ञान कहां से आया यह ज्ञान कैसे आया। यह ज्ञान सूर्य से आया। सूर्य से यह ज्ञान प्राप्त कर लेना, सूर्य की पूजा कर लेना, सूर्य की स्तुति कर लेना यह केवल भारत में ही नहीं रहा। मिश्र की सभ्यता और भारत की प्राचीन सभ्यता में हमें आश्चर्यजनक साम्य दिखाई देता है।

प्राचीन मिश्र को जो राजा होते थे जिन्होंने बड़े बडे पिरामिड का निर्माण कराया वह सभी सूर्य की पूजा करते थे। उनकी उत्पत्ति भी सूर्य से ही मानी जाती थी। वे रे के नाम से सूर्य की पूजा करते थे। जैसे भारत में नरसिंह की मूर्तियां दिखती है वैसी ही मूर्तियां हमें मिश्र में भी दिखाई देती है। बहुत ज्यादा साम्य दिखाई देता है। सूर्य की पूजा का पूरे विस्तृत जगत में विस्तृत संसार में बड़ा महत्व है। चाहे साइबेरिया ले लें या किसी स्थान को ले लें कर्क संक्रांति मकर संक्राति यह इस बात का प्रतीक है इस चीज का प्रतीक है कि वह सृष्टि का आद्य है। सृष्टि का आद्य़ होने के कारण वहीं से सृष्टि शुरू हुई है चालू हुई है, ज्ञान की परंपरा वहीं से चालू हुई है और प्रभु ने जो ज्ञान दिया वो इस तरह से बोलकर नहीं दिया। जो प्रकृति के सिद्धांत हैं प्रकृति के नियम हैं जो कण-कण में छुपे हुए हैं।

न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण बल की खोज की। गुरुत्वाकर्षण बल पहले से था केवल उसका पता लगाया न्यूटन ने। उसके नियमों को कैलकुलेट करना सीखा। इसी तरह प्रकृति में नियम हर जगह विद्यमान है, हमारी मानवीय बुद्धि का कार्य है उसको प्राप्त कर लेना। यह मानवीय बुद्धि बाहर अन्वेषण करके चीजों को देख करके, एग्जानिमेशन करके कुछ नियम को ढूंढ़ लेते हैं लेकिन हमारी अन्तर्रात्मा उन नियमों का साक्षात्कार करती है। साक्षात ज्ञान प्रदान करती है। इन नियमों को योग को जो प्राप्त करती है वो हमारी अन्तर्रात्मा करती है हमारी इन्द्रियां नहीं करती। हमारा मन नहीं करता यह एग्जामिनेशन के द्वारा प्राप्य नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि ये जो ज्ञान है जो योग का ज्ञान है यह कोई एग्जामिनेशन से नहीं बना। कोई प्रैक्टिकल करके इसको नहीं सीखा गया बल्कि सहज ज्ञान के द्वारा अन्तर्रात्मा में यह ज्ञान आया है। जो ज्ञान प्रैक्टिकल के द्वारा आता है वो टेम्पोरल होता है, सामयिक होता है अगला आने वाला ज्ञान उसको बदल देता है। जैसे हम एक वैज्ञानिक ज्ञान के रूप में देखते हैं कि एक वैज्ञानिक होता है वो अपनी थ्योरी देता है 

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23 September 2022, 03:20 PM IST

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