ॐलोक आश्रम: ज्ञान योग, कर्म योग कहां से आया? भाग-3

ॐलोक आश्रम: ज्ञान योग, कर्म योग कहां से आया? भाग-3

Janbhawana Times
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अगला वैज्ञानिक होता है जो उस थ्योरी का खंडन करके अपनी नई थ्योरी देता है जो ज्यादा सटीक होती है लेकिन पूर्ण सटीक नहीं होती फिर अगला वैज्ञानिक होता है उसमें थोड़ा संशोधन कर देता है इस तरह वैज्ञानिक ज्ञान आगे बढ़ता है। सहज ज्ञान तीनों कालों में एक सा होता है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं करता वह एक ही तरह का रहता है और एक ही तरह से आता है। जैसे गणित का ज्ञान है वह एक ही तरह का ज्ञान है अंदर से उद्भुत और जो भी अंदर से उद्भुत है भगवदगीता का ज्ञान है वह ज्ञान अंदर से उद्भुत हमारी अन्तर्रात्मा का सहज ज्ञान इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। ये जैसा था वैसा ही रहता है क्योंकि यह अपने आप में पूर्ण ज्ञान है।

भगवान ने सबसे पहले इस ज्ञान को सूर्य को दिया क्योंकि सूर्य हमारे सौरमंडल का राजा है और वह उन समस्त नियमों को धारण करता है। अगर हम सूर्य का अध्ययन करें, सूर्य से निकलने वाली किरणों का अध्यय करें इस पृथ्वी के नियमों का अध्ययन करें तो हमें योग के, हमें संसार के सारे नियम मिल जाएंगे। अगर हम छोटे पिंड का भी अध्ययन कर लें उसके समस्त नियमों का अध्ययन कर लें और उसमें लगने वाले समस्त बलों का अध्ययन कर लें तो हमें ब्रह्मांड में लगने वाले बलों का भी ज्ञान हो जाएगा।

सूर्य की उपासना, सूर्य का अध्ययन, सूर्य के बारे में जानना ये हमारी प्राचीन शास्त्रों में बड़ी प्रमुखता से कहा गया है और इसका कहने का तात्पर्य यही है कि जिस तरह बाहर का सूर्य है उसी तरह हमारे अंदर का भी सूर्य है। हम अंदर के सूर्य को जगाएं योग के द्वारा, हमने जो ज्ञान प्राप्त किया है उस ज्ञान को अगर हम प्राप्त करें तो हम में हर मनुष्य में उसी तरह प्रगट होगा जिस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है। भगवान श्रीकृष्ण यही कह रहे हैं कि यह जो ज्ञान है यह ज्ञान कृत्रिम नहीं है यह ज्ञान सहज है और सबकी अन्तर्रात्मा में यह पहले से ही विद्य़मान है।

यह मैंने जब सृजन हुआ प्रकृति का तभी उस सृजन में नियम रूप में सूर्य के अंदर ही मैंने इस ज्ञान को रख दिया। यह ज्ञान जब पृथ्वी और सूर्य का संयोग हुआ और सूर्य की किरणों का संयोग हुआ पृथ्वी से। धीरे-धीरे जब पृथ्वी की संरचना चालू हुई और जो भी प्राणी आया उन सब में यह ज्ञान सहज ज्ञान के रूप में अवस्थित रहा। मनुष्य इस सृष्टि की सबसे विकसित कृति है तो यह ज्ञान उसके अंदर उद्भुत है। जब योग के द्वारा, चिंतन के द्वारा, कर्म के द्वारा जब व्यक्ति निष्काम भाव से या तो कर्म करता है या मेडिटेशन करता है, भगवान के अंदर लीन हो जाता है या इतनी भक्ति करता है कि अपना सबकुछ भगवान को समर्पित कर देता है तो वह एक ऐसी मानसिक अवस्था में पहुंच जाता है कि जहां पर उसका सहज ज्ञान प्रकाशित हो जाता है।

जहां उसको नियमों का साक्षात ज्ञान हो जाता है। जहां किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती जहां कोई इन्द्री की आवश्यकता नहीं होती, जहां किसी मन की आवश्यकता नहीं होती बल्कि आत्मा को अपने आप ज्ञान प्राप्त हो जाता है वही योग ज्ञान है। वही भगवान ने आदि रूप में दिया था और उसको ज्ञान और अनुभव के द्वारा बतलाते बतलाते अब समय ऐसा आया कि भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बतला रहे हैं।

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24 September 2022, 02:33 PM IST

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