सर्वप्रथम गणेश का ही पूजन क्यों?
जब सभी देवता ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर लौटे तो गणेशजी को वहीं पर खड़ा पाया। अब शिवजी प्रतियोगिता के विजेता को घोषित करने चल दिए। उन्होंने गणेशजी को विजयी घोषित किया।
जब सभी देवता ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर लौटे तो गणेशजी को वहीं पर खड़ा पाया। अब शिवजी प्रतियोगिता के विजेता को घोषित करने चल दिए। उन्होंने गणेशजी को विजयी घोषित किया। सभी देवता आश्चर्य में पड़ गए कि सभी देवता पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर आए हैं उन्हें छोड़कर गणेशजी को क्यों विजेता घोषित किया गया।
तब शिवजी ने बताया कि पूरे ब्रह्मांड में माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है और गणेशजी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा की है, इसलिए वह सभी देवताओं में सबसे पहले पूजनीय हैं। तभी से गणेशजी की पूजा सबसे पहले होने लगी। सभी देवताओं ने शिवजी के इस निर्णय को स्वीकार किया।
शुभकार्य का आरंभ -
किसी भी शुभकार्य का आरंभ करने के पूर्व गणेश जी की पूजा करना आवश्यक माना गया है। क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा जाता है।
गणेश जी का ध्यान -
गणेश जी के स्मरण और ध्यान एवं जप और आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है और विघ्नों का नाश होता है। ये शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात प्रणव रूप है।
गणेश का अर्थ है -
गणों का ईश अर्थात गणों का स्वामी। किसी पूजा आराधना और कार्य में गणेश जी के गण कोई विघ्न-बाधा न पहुंचाएं। इसलिए सर्वप्रथम गणेश पूजा करके उसकी कृपा प्राप्त की जाती है।
श्री गणेशाय नमः -
प्रत्येक शुभ कार्य के पूर्व श्री गणेशाय नमः का उच्चारण कर उनकी स्तुति अनुष्ठान में यह मंत्र बोला जाता है।
वेदों में स्तुति -
कहा गया है गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कबिनामुपश्रवस्तमम। ज्येष्ठराजं ब्राम्हणां ब्रम्हणस्पत आ नः श्रृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम।
पद्मपुराण के अनुसार -
ब्रम्हा जी ने कहा है कि जो कोई संपूर्ण सृष्टि की परिक्रमा पहले कर लेगा उसे ही प्रथम पूजा जाएगा। गणेश जी राम नाम लिखकर उसकी सात परिक्रमा की बने प्रथम पूज्य।
शिव पार्वती -
शिव बोले पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करके जो कैलास लौटेगा वही अग्रपूजा के योग्य होगा। शिव और माता पार्वती की ही तीन परिक्रमा कर गणेश जी अग्रपूज्य हो गए।