योग और अध्यात्म उस शरीर का अध्ययन करता है प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नहीं होता

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मानव शरीर को केवल भौतिक संरचना तक सीमित नहीं माना जाता। योग और अध्यात्म में, इसे तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है: स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर। प्रत्येक का अलग महत्व और भूमिका होती है। स्थूल शरीर वह है जो हमें इंद्रियों के माध्यम से भौतिक संसार से जोड़ता है। सूक्ष्म शरीर विचारों और भावनाओं का केंद्र है, जबकि कारण शरीर आत्मा की गहराई से जुड़ा होता है। इन तीनों शरीरों को संतुलित करने से आत्मा की उन्नति संभव होती है।

Lalit Sharma
Lalit Sharma

धार्मिक न्यूज. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मानव शरीर को केवल एक भौतिक संरचना के रूप में नहीं देखा जाता। योग और अध्यात्म में शरीर को तीन मुख्य हिस्सों में विभाजित किया गया है: स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, और कारण शरीर। इन तीनों का आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अलग-अलग महत्व और कार्यक्षमता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि इन तीनों शरीरों का अपना-अपना उद्देश्य और भूमिका होती है। स्थूल शरीर वह है जिसे हम प्रत्यक्ष रूप से देख और अनुभव कर सकते हैं।

यह शरीर हड्डियों, मांस, रक्त और त्वचा से मिलकर बना है। पांच तत्वों से निर्मित माना जाता हैपृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश। यही शरीर हमें इंद्रियों के माध्यम से भौतिक जगत से जोड़ता है।

स्थूल शरीर के माध्यम से काम करतीं हैं इंद्रियां

हमारी सारी इंद्रियाँ—दृष्टि, श्रवण, स्पर्श, स्वाद, और गंध—इसी स्थूल शरीर के माध्यम से कार्य करती हैं। भौतिक सुख और दुख का अनुभव इस शरीर से ही होता है। इसके अलावा, यही शरीर भोजन, जल, और वायु के माध्यम से जीवित रहता है और इसकी देखभाल की आवश्यकता होती है। अधिकांश लोग अपने जीवन में केवल इसी शरीर को महत्व देते हैं और इसके आगे के आयामों के बारे में नहीं सोचते। यह शरीर जन्म के समय उत्पन्न होता है और मृत्यु के समय नष्ट हो जाता है। स्थूल शरीर का महत्व इस बात में भी है कि यह जीवन के भौतिक पहलुओं से हमें जोड़ता है, लेकिन यह आध्यात्मिक विकास की पहली सीढ़ी है। योग और ध्यान के माध्यम से इस शरीर को नियंत्रण में रखकर ही अन्य दो शरीरों के बारे में जागरूकता प्राप्त की जा सकती है।

सूक्ष्म शरीर: भावनाओं और विचारों का वाहक

सूक्ष्म शरीर, जिसे अर्ध-भौतिक शरीर भी कहा जाता है, वह हिस्सा है जिसे इंद्रियों से महसूस नहीं किया जा सकता। यह शरीर मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त से मिलकर बना होता है। स्थूल शरीर के विपरीत, यह आंतरिक रूप से कार्य करता है और हमारे विचारों, भावनाओं, और मानसिक प्रक्रियाओं का स्रोत होता है।

आत्मा के साथ बना रहता है सूक्ष्म शरीर 

सूक्ष्म शरीर ही वह हिस्सा है, जो स्वप्नों का अनुभव कराता है और विचारों, इच्छाओं, और अनुभवों का संग्रहण करता है। यह शरीर पिछले जन्मों के कर्मों और संस्कारों को भी धारण करता है और उनके अनुसार जीवन की दिशा को प्रभावित करता है। स्थूल शरीर के समाप्त हो जाने के बाद भी सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ बना रहता है और अगले जन्म में प्रवेश करता है। अध्यात्म में, सूक्ष्म शरीर को शुद्ध और संयमित करने के लिए ध्यान और योग का अभ्यास किया जाता है। जब व्यक्ति अपने सूक्ष्म शरीर की गहराई को समझता है, तो वह भावनात्मक और मानसिक शांति की ओर अग्रसर होता है।

कारण शरीर: आत्मा का गहनतम स्तर

कारण शरीर, जिसे आनन्दमय कोष भी कहा जाता है, आत्मा के सबसे निकट होता है। यह शरीर अत्यंत सूक्ष्म और गहन होता है, जिसे अनुभव करना अत्यंत कठिन होता है। इसे अज्ञान से उत्पन्न शरीर माना जाता है, क्योंकि यह आत्मा और ब्रह्माण्डीय चेतना के बीच का पर्दा है।जब व्यक्ति गहरी नींद में होता है, जहां सपने भी नहीं आते, तब वह अपने कारण शरीर का अनुभव करता है। इस अवस्था में, स्थूल और सूक्ष्म शरीर निष्क्रिय हो जाते हैं और हम समय और स्थान की अपनी समझ खो देते हैं। कारण शरीर ही वह हिस्सा है, जो आत्मा को मोक्ष प्राप्ति तक ले जाता है। जब आत्मा आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेती है और अज्ञान का पर्दा हट जाता है, तब कारण शरीर का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और आत्मा ब्रह्मांडीय चेतना से मिल जाती है।

निष्कर्ष: तीन शरीरों का महत्व

मनुष्य का जीवन केवल भौतिक शरीर तक सीमित नहीं है। योग और अध्यात्म का उद्देश्य इन तीनों शरीरों—स्थूल, सूक्ष्म, और कारण शरीर—के बीच संतुलन स्थापित करना और आत्मा की उन्नति की दिशा में कार्य करना है। स्थूल शरीर भौतिक अनुभवों का माध्यम है, सूक्ष्म शरीर विचारों और भावनाओं का केंद्र है, और कारण शरीर आत्मा के गहनतम सत्य का प्रतिनिधित्व करता है। तीनों शरीरों की संरचना और कार्य प्रणाली को समझकर हम जीवन को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर संतुलित कर सकते हैं, जिससे हम आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

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29 October 2024, 01:22 PM IST

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