वह पौराणिक स्थल जहां द्रौपदी ने की थी छठ पूजा, जानें महाभारत काल से जुड़े इस मंदिर का इतिहास

Chhath Puja: महाभारत काल में भी द्रौपदी ने अपने अज्ञातवास के दौरान छठ पूजा की थी. बिहार के समस्तीपुर जिले के उजियारपुर स्थित भगवानपुर कमला गांव का देवखाल चौर इस महाभारत काल की घटना से जुड़ा है. यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी ने पांडवों के साथ इसी जगह छठ पूजा की थी.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Chhath Puja: छठ पूजा का महत्व पौराणिक काल से अत्यंत विशेष माना गया है. कार्तिक मास में मनाए जाने वाले इस पर्व के दौरान छठी मैया की पूजा करते हुए मनौतियां मांगने की परंपरा सदियों पुरानी है. महाभारत काल में भी द्रौपदी ने अपने अज्ञातवास के दौरान छठ पूजा की थी. आज हम आपको बिहार के समस्तीपुर जिले के एक ऐसे पौराणिक स्थल के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां द्रौपदी ने छठ पूजा की थी और यह स्थल आज एक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित है.

बिहार के समस्तीपुर जिले के उजियारपुर स्थित भगवानपुर कमला गांव का देवखाल चौर इस महाभारत काल की घटना से जुड़ा है. यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी ने पांडवों के साथ इसी जगह छठ पूजा की थी. आज भी छठ पर्व पर यहां भारी भीड़ जुटती है. 

भगवानपुर कमला गांव का देवखाल चौर

भगवानपुर कमला गांव का देवखाल चौर महाभारत काल के इतिहास से जुड़ा एक महत्वपूर्ण स्थल है. इस स्थान को पांडवों के लाक्षागृह कांड से जोड़ा जाता है, जहां से पांडवों ने सुरंग के माध्यम से निकलकर अपनी जान बचाई थी. इसके बाद, कार्तिक मास में द्रौपदी ने इसी घाट पर छठ पूजा की थी. वर्तमान में यह स्थल एक तीर्थ के रूप में विख्यात है, और हर साल हजारों लोग यहां छठ पर्व मनाने आते हैं.

देवखाल चौर का ऐतिहासिक महत्व

स्थानीय मान्यता के अनुसार, पांडवों ने लाक्षागृह कांड के दौरान देवखाल चौर के सीढ़ी घाट पर अपनी सुरक्षा के लिए छठ पूजा की थी. कहा जाता है कि इस चौर में पानी कभी नहीं सूखता, चाहे आसपास सूखा ही क्यों न हो. स्थानीय लोग मानते हैं कि इस भूमि में विशेष उर्वरा शक्ति है, और यहां स्थित जयमंगला स्थान भी इसी शक्ति का प्रतीक है. यह स्थल आज एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का स्थान बन गया है, जिसे लोग एक पर्यटक स्थल के रूप में भी विकसित करने की मांग कर रहे हैं.

झारखंड के रानीचुआं का पौराणिक महत्व

झारखंड के रांची के पास नगड़ी गांव के रानीचुआं परिसर में भी छठ पूजा का विशेष महत्व है. यहां भी महाभारत काल में द्रौपदी ने छठ पूजा की थी, ऐसा स्थानीय मान्यताओं में कहा जाता है. यहां का एक छोटा सा जलकुंड निरंतर पानी की धारा उत्पन्न करता है, जिसे स्वर्णरेखा का उद्गम स्थल माना जाता है. यहां के ग्रामीणों का मानना है कि इस स्थान पर छठ पूजा करने वाले लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

अर्जुन के तीर से निकला पानी

महाभारत के अनुसार, जब पांडव अज्ञातवास में थे, तब इसी क्षेत्र में एक दिन माता कुंती को प्यास लगी थी. तब अर्जुन ने अपने गांडीव से एक तीर चलाया, जिससे जमीन से पानी निकलने लगा. यह वही स्थल माना जाता है जहाँ पांडव रुके थे और अर्जुन ने अपनी माता के लिए पानी का इंतजाम किया था. इस पवित्र जलकुंड में आज भी लोग स्नान कर अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की कामना करते हैं.

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06 November 2024, 10:27 PM IST

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